पूगल का इतिहास | Poogal Ka Etihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संव बाना की पुत्री जसोदा वी सगाई राजा रायसिंह के राजकुमार मोपत से हुई थी, राजयुमार वी वियाह से पहले असमय मृत्यु बे कारण जसोदा बीवानेर आ वर उनवे पीछे बवारी सती हो गई, ऐसा उदाहरण भारत के अन्य राजवणोमे दुम दै 1 राव सुदरसेन ने अपने वशज, जैसलमेर वे पदच्युत रावल रामचम्द्र, को सन्‌ 1050 ई में अपने राज्य का आधा पश्चिमी मांग, 15000 वर्ग मीस, देवर देरावर बा नया भाटी राज्य स्थापित वरवा दिया। यह राज्य सन्‌ 1763 ई मे दाऊद पुत्रों के अधिवार मे चला जया, पुछ सप्य पश्चात्त्‌ यही राज्य बहावलपुर (प्राविस्तान) राज्य वे नाम से जाना जाने लगा । परल कौ स्वतन्त्रता मप्ट बरने के लिए बीझाउर के राजा बरणसिंह ने सन्‌ 1665 ईं में राव सुदरसेन को मारा, महाराजा गजतिह न सन्‌ 1783 ई मे राव भमर सिह को मारा और महाराजा रतन मिह ने सन्‌ 1830 ई में राव रामसिह का मारा। भाटिया के लिए युद्ध में मारे जाने वाला विकल्प सरल था, उनके लिए किसी की अधीनता स्वीकार करनी दुष्कर थी । सन्‌ 1650 ई मे पूगल राज्य का आया भाग देरावर राज्य भे परिणत हो गया, सन्‌ 1749 ई में वीकमपुर और बरसलपुर जैसलमेर राज्य में विछीन हो गए भौर 1837 ई से राव बरणी सिह ने बचे हुए पूगल राज्य के लिए बीकानेर राज्य का परोक्ष रूप से सरक्षण ले लिया। सन्‌ 1707 ई में बादशाह औरगजेव वी मृत्यु वे पश्चात मुगल सामझ्माज्य बिसर गया था, साम्राज्य की सेवा करने वाले राजा महाराजा अपने राज्यो मे लौट गए । आर्थिक विपदा से उबरने के लिए जयपुर, जोधपुर और बीकानेर राज्यो ने जाट और विश्नोई काइतकारों को निचोडना शुरू विया। बीकानेर ओर जैसलमेर जंसे गरीव राज्यो को छोड कर अन्य सम्पन्न राज्यों में मराठो ने चोथ वसूल करने का भूचाल मचा दिया । राजागा ने अपनी गौर मराठो की आपिक पूर्ति बे लिए काश्तकारों का शोषण किया, यही राजपूतो ओर जाटों, विश्नोइयो के आपसी द्वेप का कारण बना और उनमे राजपूतों के प्रति बदले बी भावना आज भी है। इसके विपरीत जँसलमेर और पूगल राज्यो ने जाटो और विश्नोइयों को अपने राज्यों म बसने के लिए प्रेरित किया और उन्हें भूमि व अन्य सुविधाएं देकर प्रोत्माहित किया। पूगल के राव देवीसिंह ने सन्‌ 1950 ई के आसपास हजारो बीघा जमीन उन सव लोगो को बह्शी जो समय रहते हुए उनने पास पहुच गए। वीडियो দী वह भूमि आज लाखो की है, इसमे राजस्थान नहर के पानी से सिंचाई हो रही है । पूल राज्य न कभी भी दिल्ली के शासन की अधीनता स्वीकार नही वी, उनस रावो ने कमी राज्य के फरमान प्राप्त नहीं किए और उनके साथ पारिवारिक सम्बन्ध नही किए । पूगस म अपने राज्य के विस्तार करने का या क्षेत्र विच्छेद का स्वतस्त्र अधिकार सदैव रहा । यह सन्‌ 1837 ई के बाद ही वीकानेर राज्य के सरक्षण मे आया 1 ष मेरे विचार में जिस जाति या वश का इतिहास नही होता, उसमे आत्म सम्मान मर जाता है और उनमे देश प्रेम उत्पन्न हो ही नहीं सकता 1 प्रस्तचना 17




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