नाटककार श्रीहर्ष | Natkkar Sriharsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीहषं का जीयन-वृत्त / 15
विजय का उल्लेख किया है।
हर्ष उत्तरापय का निष्कण्टक स्वामी होता चाहंता था। अतः उसने वलभी
राज्य पर आक्रमण किया । युद्ध में हर्ष से वलभी-नरेश ध्रुवभट्ट हार गया और उसे
गुर्जर नरेश के यहाँ शरण लेनी पड़ी । हष॑ ने श्रुवभट्ट को अपने सीमान््त में
चालुक्यों के विरद्ध एक मित्र और मध्यस्थ राजा के रूप में छोड़ दिया । ध्रुवभट्ट
से अपनी मित्रता चिरस्थायी बनाये रखने के लिए उसने ध्रुवभट्ट की कन्या से
विवाह कर लिया ।
हृषं के विरुद्ध चालुक्य, लाट, मालवा और गुर्जर राज्यों ने एक संघ बना लिया
था। नर्मदा नदी के दक्षिण में सीमा-विस्तार के उद्देश्य से हर्ष ने चालुक्यवंशीय
पुलकेशी द्वितीय के विरुद्ध आक्रमण किया। हर्ष को चारों राज्यों के संघ का
सामना करना पड़ा । ऐहोल शिलालेख से ज्ञात होता है कि 'जिसके चरण कमलों
पर अपरिमित समृद्धि से युक्त सामन्तो की सेना नतमस्तक होती थी, उस हषं का
हषं युद में मारे हुए हाथियों का बीभत्स दृश्य देखकर विगलित हो गयाः ।* हषं इस
यदध मे परास्त हुमा । एक इतिहासकार का मत है कि 643 ई० मेँ कोक्द पर
आक्रमण कर पुलकेशी द्वितीय के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर उसने अपनी पुरानी
हार का बदला लिया।
बाण ने हर्ष की दिग्विजयों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि तुषारगिरि
और गन्ध-मादन के बीच की दूरी तो कम ही है । उत्साही के लिए तुरुष्कों के विषय
केवल एक हाथ के बराबर हैं । पारसीकों का देश एक छोठा भूखण्ड है, शक स्थान
केवल शशपद के समान है । प्रतीहारो के अभाव में पारियात्र देश कौ विजय केवल `
मामूली यात्रा से हो सकती है और दक्षिणापथ को शौर्य का शुल्क चुका कर पाया
जा सकता है। इन देशों की पहचान करने से ज्ञात होता है कि हर्ष का साम्राज्य
उत्तर पश्चिम, पश्चिम और दक्षिणापथ तक फैला हुआ था।
बाणभट्ट ने हर्ष को “चारो समुद्रो के अधिपति, महाराजाधिराज परमेश्वर,
समस्त चक्रवर्ती राजाओं में श्रेष्ठ तथा अन्य राजां के चूडामणि द्वारा चमकते
हृए नखो वाला कहा है ।
हर्ष की मृत्यु 648 ई० मे, बयालीस वषं तक एक महान् शासक के रूप में
शासन करने के उपरान्त हुई ।
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