संस्कृत रागकाव्यो का आलोचनात्मक अध्ययन | Sanskrit Ragkavyo Ka Alochanatmak Adhayyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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জানাব में से कक तावार्य ही घविवेबनीय हैं, 'जिन्‍्होंने काव्य के रूप एव उसके कमौकरणण प्‌ कण्विक -व्विस्तार्‌ से विचार किया है। हसये सर्वैप्रथण मामह,दण्टी तथा आचार्य विश्वनाथ उत्छे्नीय हे । अघुना তলক শ্বিবলস ক জাঘা ন্‌ काव्य 1विमावन द्रष्टव्य है| आचार्य दण्डी ने उपने काव्यादश में काव्यविभाबन हस प्रकार „ श प्रस्तुत ककया हे ~ নখ पथ च पिन च ततु श्रियेव व्यवर्थतमु । पथं वतुष्यदी तस्व वत बा्तिरिति दिवा 11 इन्दो विचित्था सकठस्तत्प्रपत्चों 1तिदर्शितः । खा त्वया नोती गभीर काव्यलागरम ।! युक कृषट्कं कोषः: सहुघात हात तादुश: | समैबन्धाश्हयत्वादनुक : पथविस्तः : | दण्ढी के अनुसार काव्य तीन प्रकार का होता हैं -- सथ, पय गौर मिभ | मय उसे कहते हें जिसे हम स्वमावत: बोठते हैं । जायायं दण्डौ ने पथ चतुष्यदी * कहा है । यह यथ प्राय: बार चरणों का होता है । पथ के दो प्रकार होते हं - वृत्त स्व बाति । कार संस्थात वरुण को वत्त तथा मात्रा सद स्थात चरण को जाति कहते हैं। मिश्र शव्द से नवपचमव ममित्रण” विवच्ित है ।नाटक- বস্তু আাশ্যি इसके प्रमेद में आते हं । क्नाति आष्ठि छन्‍दों का 'हत्दोंविचिति' ना मक कन्यां ग्रस्थ में वविस्ताएथुर्वक विवेबन किया यया हे । मुक्तक, कुक, करीन , सघधात आदि पथ पविस्तर का हस ग्रन्थ में विल्तुत ।विवेबन नहीं किया गया है, क्यों कि वे समी सगर्वा त्यक महाकाव्य के जहु.ममूत हे । इसमें मुक्त क तथा कुक सादाद बहु-्ग हे जीर कोण तथा थात तचदनने न्ग शो बाया काते ई । अ स कलकः वनः एन मि य तः द श निकः १~ काव्याद ~ प्रथम पपि ष्डेद, शोक ९९ १२, २३, पृष्ठ खस्था १४, १५ ।




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