संस्कृत रागकाव्यो का आलोचनात्मक अध्ययन | Sanskrit Ragkavyo Ka Alochanatmak Adhayyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
337
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)জানাব में से कक तावार्य ही घविवेबनीय हैं, 'जिन््होंने काव्य के रूप एव उसके
कमौकरणण प् कण्विक -व्विस्तार् से विचार किया है। हसये सर्वैप्रथण मामह,दण्टी
तथा आचार्य विश्वनाथ उत्छे्नीय हे । अघुना তলক শ্বিবলস ক জাঘা ন্
काव्य 1विमावन द्रष्टव्य है|
आचार्य दण्डी ने उपने काव्यादश में काव्यविभाबन हस प्रकार
„ श
प्रस्तुत ककया हे ~
নখ पथ च पिन च ततु श्रियेव व्यवर्थतमु ।
पथं वतुष्यदी तस्व वत बा्तिरिति दिवा 11
इन्दो विचित्था सकठस्तत्प्रपत्चों 1तिदर्शितः ।
खा त्वया नोती गभीर काव्यलागरम ।!
युक कृषट्कं कोषः: सहुघात हात तादुश: |
समैबन्धाश्हयत्वादनुक : पथविस्तः : |
दण्ढी के अनुसार काव्य तीन प्रकार का होता हैं -- सथ, पय गौर मिभ | मय
उसे कहते हें जिसे हम स्वमावत: बोठते हैं । जायायं दण्डौ ने पथ चतुष्यदी *
कहा है । यह यथ प्राय: बार चरणों का होता है । पथ के दो प्रकार होते
हं - वृत्त स्व बाति । कार संस्थात वरुण को वत्त तथा मात्रा सद स्थात
चरण को जाति कहते हैं। मिश्र शव्द से नवपचमव ममित्रण” विवच्ित है ।नाटक-
বস্তু আাশ্যি इसके प्रमेद में आते हं । क्नाति आष्ठि छन्दों का 'हत्दोंविचिति'
ना मक कन्यां ग्रस्थ में वविस्ताएथुर्वक विवेबन किया यया हे । मुक्तक, कुक, करीन ,
सघधात आदि पथ पविस्तर का हस ग्रन्थ में विल्तुत ।विवेबन नहीं किया गया है,
क्यों कि वे समी सगर्वा त्यक महाकाव्य के जहु.ममूत हे । इसमें मुक्त क तथा कुक
सादाद बहु-्ग हे जीर कोण तथा थात तचदनने न्ग शो बाया काते
ई ।
अ स कलकः वनः एन मि य तः द श निकः
१~ काव्याद ~ प्रथम पपि ष्डेद, शोक ९९ १२, २३, पृष्ठ खस्था १४, १५ ।
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