आलोचना इतिहास एवं सिद्धान्त | aalochana itihaas evan siddhaant

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aalochana itihaas evan siddhaant by हरीश चंद्र जायसवाल - Harish Chandra Jaiswal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৩০ এছ জী = -- > आलोचना... ७ उसको आलोचना ममंस्पर्शी तथा व्यापक होती है। भ्राचायं रामचन्द्र शुक्ल कौ तुलसी कौ श्रालोचना के प्रकाश मे इस तत्व को समा जा सकता है । शुक्लजी ने जिस सरलता तथा भव्रुकता के साथ तुलसी कौ भावुकता की श्रनुभूतिकी है वहु स्वयं कविता बन गई है। ऐसी श्रालोचनारं ही ममंस्पर्ी तथा व्यापक हौ सकती हैँ जिसमे सिद्धान्त पक्ष के साथ भावुकता को संतुलित समन्वय हो | €. आलोचना मे सिद्धान्त पक्ष का निर्माण भी बहुत आवश्यक होता है | यदि किसी कवि को कविता का यह रूप रहा तो उसका कारण क्‍या था! कवि के सिद्धान्त क्या थे, उन सिद्धान्तों पर अआलोचक विचार करता है उस पर विचार विमशञ करता है। इस प्रकार सिद्धान्तों के सम्बन्ध में आलोचक नियमों का निर्मारण करता है, नए सिद्धान्तों की स्थापना करता है। इस प्रकार आलोचना में सैद्धान्तिक पक्ष का भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहता है । १०, आलोचना में व्याख्या का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। हडसन के अनुसार व्याख्या ही आलोचना का मूल तत्व है। सच यह है कि व्याख्या तो श्रालोचना का आरम्भिक तत्व है | बिना इसके आलोचक किसी रचना को न॑ सम सकता है और न उस पर कुछ निणंय दे सकता है | | इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सच्ची और पूर्ण आलोचना में इन सभी तत्वों का संतुलन के साथ समन्वय होना आवश्यक है | आलोचना और, विज्ञान ; आलोचना में तक और विश्लेषण की पद्धति को देखकर एेसा लगने लगता है कि श्रालोचना विज्ञान है, कला नहीं । प्रसिद्ध विद्वान मोल्टन ने आलोचना को निगमनात्मक विज्ञान की श्रेणी में रक्खा है । उन्होंने लिखा है £]05 >जबाः0-6]६८ ४8 6 010 एल 006200606 0৫ 1165801620০ ४16 प्ल्‌ जा १४८ पतपलतर् 8८16०८९. मोल्टन की धारणा है कि आलोचक को रचना का गुण-दोष विवेचन स्वतन्त्र तथा निरपेक्ष रूप से करना चाहिए। आलोचक वेज्ञानिक की तरह निरीक्षण, परीक्षण तथा विश्लेषण द्वारा किसी रचना पर विचार करता है । पर एेसा समभना ठीक नहीं है। हडसन ने उन आलोचकों के सम्बन्ध में जो भ्रालोचना को छुद्ध वज्ञानिक मानते हैं, बहुत ही सुन्दर तथा मामिक बात कही है। ऐसे आलोचकों की दृष्टि में शेक्सपीयर और बेन जॉन्सन दोनों ही महनीय हैं। उनमें केवल उतना ही अन्तर है जितना पुष्प और उसके सुन्दर पौधे में है क्योंकि दोनों में ऐसी कोई सामान्य भूमिर्यां नहीं है जिससे उनकी तुलना की जा सके 1१ अतः इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि आलोचना को विज्ञान नहीं माना जाता । श्रालोचना को कला मानने वाले डेविड उचेस ने लिखा है श्रालोचना कला है, विज्ञान 1, |) [70000000020 0 005 50505 ০৫ [8661555:5-075.0500 _ ভা: ০ +++ ~ 7. ~~ ~ ~ ~ ~ ~ ^~ 1 ~ त




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