रोम का इतिहास | Rom Kaa Itihaas

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Rom Kaa Itihaas by श्री प्राणनाथ विद्यालंकार - Shri Pranath Vidyalakarta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) कार्थेज का राष्ट जब तक शक्ति-संपन्न था, रोम नगर-निवा- सियो कै प्रत्येक दल का ध्यान उसी श्रोर लगा रहता था । श्रपने शत्रु का उच्छेद करने की ही उन्हें दिन रात चिंता लगी रहती थी। गल-निवासियों के मध्य इटली में विद्यमान रहने से रोमन अपने आपको बचाने के लिये ही शरश शश्च रखा करते थे। भाई भाई मिलकर रहते थे। परंतु इन दोनों शत्रुओं से छुटकारा पाते ही रोमन वे प्राचीन रोमन न रहे | पारस्प- रिक भूगड़ों ने रोम में प्रबलता पाई । नियमों का अतिक्रमण किया जाने लगा। एक दल दूसरे दक्ष के खून का प्यासा हो गया। उमंगी, भागी, विल्लासी जनों को अपनी कामनाओं को पूणे करने का अवसर मिल गया। स्वाथे तथा अभिमान ने अतरंग सभा के सभयों में अवतार ले जिया । शक्ति तथा भय ने जनता के चित्त का अस्त कर लिया । शासकों का स्वेच्छा- चारित्व बढ़ने लगा। बदमाशी तथा लुच्चेपन ने नागरिकों के हृदय में घर कर लिया । रोम के अधःपतन का सूत्रपात करने के लिये जनता की उपरि-लिखित शआआचार-श्रष्टता ही पर्याप्र थी। परंतु इतने पर ही बस न हुआ। एक शरोर कारण ने रोम का अध:पतन आवश्यक कर दिया । रोम की सेना शक्ति-शालिनी हो! गई । उसने शासकों के चुनाव में अपना हस्तक्षेप किया। श्रव क्याथा। सैनिकों ने जिसका पच्च ले लिया, वही रोम का शासक बनने लगा । सेनापति सेनापति से लडते थे।




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