श्री भीष्म पितामह | Shri Bhishmapitamah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ह%1 श्रीमीष्मपितामह
में ही अपना समय विताबेंगे; परंतु मगवानकी दूसरी ही इच्छा थी।
मगयानूकी तो अमी इनका विवाह करवाकर एक महान् प्सकी
सृष्टि करनी-पी और हुआ भी ऐसा ही |
एक दिन मदाराज शान्तनु धूमते-फिरते यमुना-किनारे पहुँच
गये | वहाँपर एक तरद॒की दिव्य अपूर्व घुग्ध फैड ही ची ।
शन्तनु बहत प्रन इए भीर वह सुगन्ध कर्ति आ रदी है इसका
पता ठगाने छग | জামী অর जठ किनारे ९क परम भुन्दरी
कल्याक्य देखकर सम्रादने पूछा-तुम कौन हो और यहाँ किसडिये
आयी हो ” कम्याने उत्तर दिया कि भमैं दाशराजकी पुत्री हैँ तथा
यहाँसे नावद्वारा आगन्तुकोंकी उस पार पहुँचाती हूँ |, महाराज
शान्तनु उसकी सुन्दरताकों देखकर उसपर मोहित हो गये और
उन्होंने उत्त कन्यके धर्मप्रिता निधादराजके पास जाकर अपनी
इच्छा प्रकट की । दाशराजने कद्धा-“महाराज | यह तो सभी जानते
हैं. कि छद़की अपने घर नहीं रखी जा सकती । उसे किसी-न-किसी-
को देना ही पड़ेगा । देनेंमें मुसे कोई आपत्ति नहीं हैं, आप डेशके
खामी हैं । यद्रि यद्ध छड़की आपकी हो सके तो इसमे बढ़कुर मेरे
তি सौमाग्यकी बात और क्या होगी | आप सत्यवादी हैं । मैं
आपके वर्चरनोपर विज्ञास करता हूँ ) आप-जैसे सत्यात्रकी कम्या
देनेकी मेरी द्वार्दिक इच्छा भी है तयापि मैंने पहले ही एक प्रण कर
लिया है | यदि आप उसको पूरा कर सके तो फिर कत्यादान
নে कोई अड्चन,नहीं रद जाय्गी।? शान्तनुने पूछ--ध्माई ! वग्हारा
अमिश्राय क्या हैं ?” साफ-साफः कहो । तुम्हारी बात सुनकर यदि
হর
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