नवीन मनोविज्ञान और शिक्षा | Navin Manovigyan Aur Shiksha

Navin Manovigyan Aur Shiksha by लालजीराम शुक्ल - Laljiram Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० नवीन मनोविज्ञान और शिक्षा अति अत्याचार है । बच्चा उसी व्यक्ति की छाती से लगा रहना चाहता है जो उसके प्रति वास्तविक प्यार करता हे । दाई के खिलाने से बच्चा सन्तुष्र नहीं होता । उसकी प्रेम की मान- सिक तृप्ति दाई की गोदी में रहकर नहीं होती । कितनी ही दाइयाँ तो बिलकुल मूखे होती हैं वे बच्चों को चुप करने के लिए उसे उछालती हैं जोर से चिल्ला देती हैं। उनका मुख्य ध्येय वच्चों के प्रति प्रेम-प्रददान नहीं होता उन्हें किसी प्रकार चुप करना मात्र रहता है । बालक अपनी असन्तुष्टि रोकर ही प्रदर्शित कर सकता हे । इसका रोना दो प्रकार से बन्द किया जा सकता हे--उसकी इच्छा की तप्ति करके ओर भय दिखा- कर | जैसा ऊपर कहा गया है उसकी एक प्रबल इच्छा प्रेमी की छाती से छगे रहने की होती है । इसे माँ ही भलीभाँति सन्तुष्र कर सकती है । जब माँ का स्थान दाई ग्रहण करती हे . तो उसकी यह इच्छा अतप्त ही रह जाती है और जब बालक रोकर अपने असन्तोष को प्रकट करना चाहता है तो मूखें दाई वालक के हृदय में भय उत्पन्न करने वाली चेष्ाओं के द्वारा उसका रोना बन्द कर देती है । बाठक के इस काल के भय अथवा प्रसन्नता के संस्कार उसके मन में दढ़ता से अझ्लित दो जाते हैं और वे अददय मन में सदा वने रहते हैं। एक वर्ष के वाठक का भय उसे स्मरण नहीं रहता । वास्तव में चार वर्ष की अवस्था के पूर्व के अनुभव बिरले ही मनुष्य को स्मरण रहते हैं। इतना ही नहीं जो अनज्ञुभव जितने अपिय दोते हैं वे उतने ही स्सृति-पटल पर आने में रुकते हैं किन्तु वे अदइय मन में रहते हुए भी सक्रिय होते हैं। जीवन की भिन्न-भिन्न घटनाओं पर हमारे दबे हुए संबेग आरोपित हो जाते हैं। जिस बाठक को




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