विचार धारा | Vichar Dhara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)লবন জা বনি न
अबम्ति और उड़ीसा मध्यदेश के बादर ये१ । ब्रमण का सिला धून श्राल
फल फा स्थानेश्वर श्रतुमान रिया गया ६९ । यद श्रतुमान टीक ही मालूम
होता है क्योड़ि यहाँ का निकटवत्तों देश अत्यंत धाचौनकाल से मध्यदेश की
पचिम की सीमा रहा है। पूर्व मे कजंगल३ भागलपुर से ७० मील पूब॑ में
माना गया है।
इससे यह स्पष्ट द्वे कि मनुस्मृति के मध्यदेश को ध्यान भें रखते हुए,
बीद्धवाल में मध्यदेश वी पूर्वों सीमा बहुत श्रागे बढ़ गई थो। भारतीय
सभ्यता का कंदर उस समय विहार की भूमि थी श्र उसव्रा भी मध्यदेश में
বিনা জানা श्राश्चर्यजनक मह्ी है। प्राचीन झार्य सम्यता फे साथ ही
झ्रार्यावर्त्त शब्द का लोप हो चुका था श्रतः ब्रोद्धकाल का मध्यदेश श्रार्या-
यर्च का मध्यदेश न होकर भारत का मध्यरेश रहा दोगा। एक प्रकार
से यह शार्यावर्त का मध्यदेश भी कद्ठां जा सऊता ई क्पोकि यथार्थ में आ-
सम्पतां दिष्य पर्वत के दक्षिण में प्रायः कृष्णा नदी तक पैल चुकी थी श्रतः
उन भागों थी आर्यादर्त मे गिनती होनी चाहिए यी, यद्यदि दस परपरा
प्रयोग संस्कृत साहित्य में कहीं नहीं मिलता हई । गुजरान श्रौर मदारष्र को
अथवा फृष्णा नदी के दद्धिण भाग पो भी अ्गार्य देश भौन कष्ट सकता है
उड़ीसा शर छत्तीसगढ़ वी भी गिनती श्रार्याव्त में होनी चाहिए । श्राप
সং নাকে খা জনি देशों पर भो आर्य सम्प्ता का गहरा रंग चढ़ा
हुश्ा है। बसे तो दक्तिण में रामेर्र श्रीर शड्ढा तथा भारत के यरादर* मो
बारों और के देशों में भी थ्रार्य लोग पहुँच गए थे श्रीर उन्होंने बहाँपर
आपनी सभ्यता वी छाप लगा दी थी।
मध्ययुग में मध्यदेश के अर्थ करने में मनुस्मृति के बर्न का रपट प्रभाव
देख पड़ता ६। बुद्ध लेखकों ने तो मनुस्मति के शब्द प्रायः ज्यों फे त्पों
{कशत ६, «७ दें शो सर'पा टिरों का दर्टर है हो शहर (मकर र मम) अस्जव देव
(সখ্ছইত ) ফী আন যা হট উঃ
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