नवीन दृष्टि में प्रवीन भारत | Naveen Drishti Me Praveen Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भवीनहास्मेप्रवीनमारत ॥। [২৬] गरभीर भौर सुक्म है कि आनतक परिचमी विद्वानगण उप्त को समझ नहीं प्के। युद्धविद्या की उन्नति. : भुप्तलमान आक्रमण प्ले पूर्ववर्ती समरविद्या को देख कर कोई फो भावुक ऐसा कहने लगते हैं कि समरविद्या में भारतवष ने ए- सी उन्नति नहीं की थी कि जैप्ती आन दिन यूरोप कर रहा है; उ- न का यह विचार भी अमपूर्ण ही है । जत्र देखते हैं कि आय्य ना- দি के चार उपवेद यथा आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद, और स्थापत्तवेद्‌ इन चार्रों में से एक उपवेद धनुर्वेद्‌ भ्र्थात्‌ युद्धविद्या मी थी; जब दे खते हैं कि प्राचीन आय्यनाति के युद्धाल्र ऐसे अद्भुत थे फि निनका निर्माण कौशल अभी तक समझ में नहीं आता; और नव दे खते हैं।के उनकी अस्थचालन रीती और नानाव्यूहरचनाकौशल आजकल के विद्वान्‌ गण तक नहीं समझ सकते; तन्र कैसे कहेंगे कि उनकी समराविद्या वत्तै- मान यूरोपीय स्मरविद्या से न्यूनथी । यहतो ऐतिहासिक प्रमाण ही है कि जब औसत के अधित्रात्रोगण और मुप्तलमान सम्राट्गण भारत में आ- ऋमण करते थे तो वे भारत की पादाविक,अश्वारोही, रथी और ह- स्व्यारोही सेना को देखकर मोहित हुआ करते थे; एथिवीविनयी महावीर अ्रलकूनन्डर शथेवी की किस्ती जाति से नहीं डरा परन्तु के- घल बह प्रथम तो राजा पुरु की वीरता से अतिमोहित हुआ और पुनः मगध सम्र्टू के सेनाबल को घुनकर ही स्वराज्यू में लौटगया । प्रा- नीन आर्य्यनाति की अद्भुत अस्थविद्या, वीरत्व और व्यूह रचना आदि युद्ध कोशल कितनी उन्नति को धारण किये हुए थे उस्त का प्र- |




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