नवीन दृष्टि में प्रवीन भारत | Naveen Drishti Me Praveen Bharat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भवीनहास्मेप्रवीनमारत ॥। [২৬]
गरभीर भौर सुक्म है कि आनतक परिचमी विद्वानगण उप्त को समझ
नहीं प्के।
युद्धविद्या की उन्नति. :
भुप्तलमान आक्रमण प्ले पूर्ववर्ती समरविद्या को देख कर कोई
फो भावुक ऐसा कहने लगते हैं कि समरविद्या में भारतवष ने ए-
सी उन्नति नहीं की थी कि जैप्ती आन दिन यूरोप कर रहा है; उ-
न का यह विचार भी अमपूर्ण ही है । जत्र देखते हैं कि आय्य ना-
দি के चार उपवेद यथा आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद, और स्थापत्तवेद्
इन चार्रों में से एक उपवेद धनुर्वेद् भ्र्थात् युद्धविद्या मी थी; जब दे
खते हैं कि प्राचीन आय्यनाति के युद्धाल्र ऐसे अद्भुत थे फि निनका
निर्माण कौशल अभी तक समझ में नहीं आता; और नव दे खते हैं।के उनकी
अस्थचालन रीती और नानाव्यूहरचनाकौशल आजकल के विद्वान्
गण तक नहीं समझ सकते; तन्र कैसे कहेंगे कि उनकी समराविद्या वत्तै-
मान यूरोपीय स्मरविद्या से न्यूनथी । यहतो ऐतिहासिक प्रमाण ही है कि
जब औसत के अधित्रात्रोगण और मुप्तलमान सम्राट्गण भारत में आ-
ऋमण करते थे तो वे भारत की पादाविक,अश्वारोही, रथी और ह-
स्व्यारोही सेना को देखकर मोहित हुआ करते थे; एथिवीविनयी
महावीर अ्रलकूनन्डर शथेवी की किस्ती जाति से नहीं डरा परन्तु के-
घल बह प्रथम तो राजा पुरु की वीरता से अतिमोहित हुआ और पुनः
मगध सम्र्टू के सेनाबल को घुनकर ही स्वराज्यू में लौटगया । प्रा-
नीन आर्य्यनाति की अद्भुत अस्थविद्या, वीरत्व और व्यूह रचना
आदि युद्ध कोशल कितनी उन्नति को धारण किये हुए थे उस्त का प्र-
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