श्वेताम्बर मत समीक्षा - दिग्दर्शन | Shwetamber Mat Sameeksha Digdarshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[৭] न्यायतीय का + जेन जगत्‌ » म ५५ क्षगडाह्ठ साहिल 1) शीर्षक ठे पर्यप्न है उप ठेखमे न्यायतोेजी ने पं, अनित कुमार के पुस्तक की समाटोचना करते हुए अपना स्पष्ट मत प्रकट करदिया है फि-“ ऐसे प्रेथीं से झगडा या दुद्दी बढती है और खेताम्बर आगमो ঘটা আমরা सिद्ध होती दे?” यद्द भाढेोचना कितनी मार्मिक हैं इसका विचार कर फिर एकताकी बात करना योग्य है, भस्तु. हमारे एक घुह्दद का तो यह अभिप्राय था कि-जानवूझकर अप्त्य जक्षिप केवल प्रतिद्धि मं भने के दिए कुड्‌ सादि डिखते, छपाते, और प्रकट करते करवाते हैं. इसलिए ऐसे छेखों- की, प्रंपोंकी कोई कौमत नहीं दे अतः ^“ अतृणे पतितो भन्दिः स्थय मेवोप श्चाम्यति ” के न्यायानुसार उत्तर नहीं देकर दुर्लक्षय करनाही सच्चा उत्तर है. और इससे उसका प्रचार स्वथं वैध इंजाता दै. दुसरी ओरसे अनेक स्ने के अनेक पत्र ইমা লাই हैं 1क्रि-उत्तर देनादी चादिए, अन्त में विशेष सम्मति से यह निश्चय हुआ कि-ययार्थ उत्तर अव्र्य देना और मै कमं उठाना पडी. शेताम्बर जैन सम्प्रदाय कौ मान्यता तो इतनी उदार हैँ कि- वद किसी भी धमकी घुराइबोेंकी और छक्ष्य न देकर-धर्ममाप्रकों दुःख परिष्टारक मानता दै. इतनादी नहीं किन्तु खेताम्वर श्रात्रक्र नस्तुपाछ तेनपारने संघ निकाटा जिन्त मे १३०० दिग यधि आविकाएँ याज़ाये सेघके साप्मेयी जिनकौ सेवामाक्ते वस्तुपाट ते- पाक करताथा, उक्त संघाधिपातियोंने अनेक विष्णु-शित्रके मंदिर,




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