हिन्दू पत्नी | Hindu patni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दू पी रद मया को स्याग्य मान रक्‍्या दे उठ समान की र्वियाँ एक बार गैवादिफ लगन का कट अनुभव था लेने पर दुबारा दिवाद करना ही नहीं चाएतीं | बच किसी समाज का लोकमत इस तरद की सुदिधा प्राम काना चाइता है हो मेरे विचार में यद्द उसे निः्सत्देद मिल भी जाती है। पत्र लेखक के पत्र से जद तक मैं समभा रुका हूँ उनवी यह शिकायत हो नहीं कि पत्नी अपनी विपयेच्छा तृप्त नहीं फर सकतीं । शिकायत तो पति की सयंकर श्रौर बेलगाम व्यभिचार की है जा कि मैं पहले कए झुफा हूँ। थो पलट देना ही इसका उपाय है । मारी अनेक और-श्रीर बुराइयों के समान ही बेचसी की भावना भी पक काल्पनिक बुराई दै । दूपित कल्पना के कारण शोक और दुःख फा समान में फैला हुआ दे, ददद थोड़े से मौलिक विचार श्र नं दृष्टिकोण के पाते दी नष्ट भ्रष्ट दो जायगा। ऐसे मामलों में मित्रो और रिश्तेदागे को चाहिए कि थे अत्याचार के शिकार को शिकारी के पर से पुड़ाकर ही सन्तोंप न कर बैठें बल्कि ऐसी स्त्री को उस सार्वजनिक सेवा के योग्य बनाने का प्रयत्त करें । इन स्त्रियों के लिए इस तरद भी शिखा पति के शंव्यस्पद सदवास से कहीं श्रधिकर सब और लामप्रद ोगी ।




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