श्रीमान् लौंकाशाह के जीवन पर ऐतिहासिक प्रकाश | Shriman Launkashah Ke Jeevan Par Atihasik Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
416
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११)
निकलेगा । इससे अब आप सदयं समझा सकते हैं | कि
लेंकाशाह की मान्ति (१) से जैनधर्म एवं समाज को नक्रा हुआ या.
नुकसान १। आंगे चलकर आपने अपने लेख में अनेक स्थलों
पर इतिद्दास शब्द का भी प्रयोग किया है संभव है ऐसा इसलिए
किया हो कि जनता यह जानलें कि आप (संतवालजी) इतिहास के
भी ममझ हें परन्तु इस विषय में हस अपनी ओर से कुछ न
लिखकर आपके ही एक दो वाक्यों को यहाँ उद्धत कर पाठकों को
बतला देते हैं कि श्रीमाद ने इतिहास का कहाँ तक अभ्यास किया
है। आप एक जगह लिखते हैं :--
“पत्रप्रभस्नरि जेवा ओ पणा क्षत्रियों ने ओसा गाम
মা जैन-पस ना श्रावको बनाव्यादे ”
तथा इस लाईन के फुट नोट मेँ श्राप पूर्वोक्त क्षत्रियो की
जातियों के नाम इस प्रकार बताते हैं:--
“भ्टी, चहुँवाण, येलोट, गोह; गोदिल, हाडा;
नाद्ब, मक्वाणा, परमार, सगेड़, अने थरादश रन-
धृतां हता >
जैन प्रकाश ता० १६-६ ३५ एृष ्ट ३३६
आपश्रीमान, रक्षप्रभसरि का समय ई० सं० १६६ श्रथति
बि० सं० २०२ का बतलाते हैं और उस समय उपयुक्त क्षत्रियों
की जातियों का द्ोना आप स्वीकार करते ह6। आपकी इस
ऐेतिदासिक विद्चत्ता को साधु () वाद १ है। आपकी लिखी उक्त जातिए
उस समय शायद भवत्रिष्यवेत्ताओं को भी भज्ञात द्वोंगी पर आपने
টি -~----~-~-------------~---~----------------~~
१--यह समय वीरनिर्वाण सें० ७० का था ।
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