बापू | Bapu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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No Information available about घनश्यामदास विड़ला - Ghanshyamdas vidala
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इसी तरह जितने प्रव्न विडनाजी ने उठाये है उ
सवकी चर्चा सूक्ष्म अवलोकन और चिंतन से भरी हुई हैं ।
उनके ঘদ-লিলন और वर्मग्रयों के अध्ययन का तो मुझे
तनिक भी खयाल नही णा । इस पुस्तक से उसका पर्थाप्त
परिचय मिलता है| गीता के कुछ ब्लोक जो कही-कही
उन्होने उद्बुत किये हे, उवका रहस्य खोलने में उन्होंने
कितनी मौलिकता दिखाई हूँ !
विडलाजी की किफायती और चुम जानेवाली इटली
के तो हमको स्थान-स्थान पर प्रमाण मिलते हूँ “मसल
में तो शुद्ध मनुप्य स्वयं ही घस्त्र है और स्वय ही उसका
चालक है।” “गन्दे कपडे की गन्दगी की यदि हम रक्षा
करना चाहने है तो पानी और सावुन का क्या काम ?
वहाँ तो कीचइ की जल्रत हैं ।” “आकाशवाणी अन्य
चीज़ो की तरह पात्र ही सुन सकता है, सूर्य का प्रतिविव
शीशे पर ही पडेगा, पत्थर पर नहीं ।” “सरकार ने हमें
शान्ति दीं, रक्षा दी, परतन्नता दी, न्माइन्दे भी वही
नियुक्त क्यो न करे ?” “सूरज से पूछों कि आप नर्दी में
दक्षिणायन और गर्मी में उत्तरायण वयो हो जाते है, तो कोई
ययार्य उत्तर मिठेगा ? सर्दी-गर्मी दक्षिणायन-उत्त रायण के
कारण होती है, न कि दल्षिणायन-उत्तरायण नर्दी-गर्मी के
শন
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হু
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