तत्वार्थ सूत्र | Tatvarth Sutra

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
667
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| ९३ ' 1
प्रथम निश्चित की हुई विशाल योजना दूर हटा दी और उतना”
भार कम किया, पर इस कार्य का सकल्पय वेसा का वेसा था।
इसलिए तबीयत के कारण जब में विश्वान्ति लेने के लिए भावनगर
के पास के वालुकड़ गाँव में गया तब पीछे तत्वार्थ का कायं दाथ
मे लिया ओर उसकी विशाल योजना .को सत्तिसत कर मध्यममार्गं
का अवलम्बन किया । इस विभ्ान्ति के समय भिन्न मिन्न जगहों
में रह कर लिखा । इस समय लिखा तो कम गया पर उसकी एक
रूपरेखा ( पद्धति ) मन में निश्चित हो गई ओर कमी श्रकेले भी
लिख सकने का विश्वात॒ उत्पन्न हुआ ।
में उस समय गुजरात में ही रहता और लिखता था । प्रथम
निश्चित की हुई पद्धति भी सकुचित करनी पड़ी थी, फिर भी पूर्व
सस्कारों का एक साथ कभी विनाश नहीं होता, इस मानस-शास्ञ्र
के नियम से में भी बद्ध था। इसलिए आगरा में लिखने के लिए
सोची गई और काम में लाई गई हिन्दी माषाका संस्कार मेरे
मन में कायम था। इसलिये मेंने उसी भाषा में लिखने की शुरुआत
की थी। दो श्रध्याय दिन्दी भाषा में लिखे गए | इतने में ही
बीच मे बन्द पडे हुए सन्सत्ति के काम का चक्र पुनः प्रारम्भ हुश्रा
और इसके वेग से तत्वार्थ के कार्य को वहीं छोडना নভা।
स्थूल रूप से काम चलाने की कोई आशा नहीं थी, पर मन तो
अधिकाधिक ही कार्य कर रह् था। उसका थोडा बहुत मूतं रूप
पीछे दो वर्ष बाद श्रवकाश के दिनों में कलकत्ते में सिद्ध हुआ
ओर चार अध्याय तक पहुँचा । उसके वाद अनेक पकार के
मानसिक और शारीरिक दबाव बढ़ते ही गए, इसलिये तत्त्वार्थं को
हाथ में लेना कठिन दो गया ओर ऐसे के ऐसे तीन वर्ष दूसरे
कामों में बीते । ० स० १६२७ के ग्रीष्मावकाश में लींसडी रवाना
हुआ तब फिर तत्त्वार्थ का काम हाथ में आया ओर थोडा 'प्रागे
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