पर्युषण पर्व व्याख्यानमाला | Paryushan Parv Vyakhyan Mala

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Paryushan Parv Vyakhyan Mala by भॅवरमल सिंधी - Bhawarmal Sindhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हसारे प्रति उन्होंने जो कृपा की, उसके लिये हम सदैव उनके आभारी रेंगे। इसके साथ साथ उन सबतों के प्रति भी आसार प्रकट करना मैं कैसे भूछ सकता हूँ, जिन्होंने ध्याख्यानमाछा फौ उपयोगिता समम्त कर उदारतापूर्वक हमें आर्थिक सहायता प्रदान की। और अन्तिम, किल्तु सव से जरूरी, धन्यवाद के पात्र है--ओतागण जिन्होंने प्रतिदिन न्याल्यानों म उपस्थित होकर ज्यास्यानमाला वी आशा- पीत सरता मे योगदान दिया । में इन सब छोयों के प्रति पुनः एक वार अपनी इतजझ्ञता प्रकट करता हूँ, भोर आशा करवा हूँ कि भविष्य मे भी इसी प्रकार तरण सेन सध' को उनका सहयोग मिरता रसा । व्याछ्यानमाका का क्रम तो प्रति वर्ष च्छा ही केगा, इसछिये जैत समा फे न्यु से मेरा अनुरोध है कि अपना भधिकाधिक सहयोग प्रदान कर इस क्रम को अधिक आकर्षक, अधिक व्यापक सोर अधिक उप- योगी बनाने का प्रयत्न करें । आज समाज और धर्म की प्रगति का पाया नवयुवकों पर ही श्रा हा दै, अतएव यदि थे अपने कर्तध्य-पाछन में थोदी सी सी ढीछाई करेंगे तो उसके सब्र से कहुए फरू उन्हें ही भोगते पढ़ेंगे। 'तहण जेन सथ! ने व्याख्यानमाढा का जो यह क्रम शुरू किया है, उसमें यदि श्वेताम्बर, दिगम्बर, सवेगी, स्थानकबासी * तेरापथी, धंगारू, सारवाढ, थी और गुजरात भादि समी प्रातो फ ककत स्थित युवो का उदार भौर ध्यापक दृष्टि को अपनाने घाला बुद्धिशञाकी चर॑ पूरा पूरा सहयोग शौर सहकार प्रदान क, जिसका कं हमें पूरा विश्वास है, तो हम ससाज, धर्म और राष्ट्र की एक सत्यन्त [হ]




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