921 हिंदी साहित्य की भूमिका (1940) | 921 hindi sahity kee bhoomika (1940)

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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रामायण और पुराण १६६ सावणि । अन्तिम तीन शिष्यो मे से प्रत्येक ने मूलस॒हिता को अवलबन करके अपनी एक एक सहिता बनाई । इन्ही चार सहिताओ पर से सभी पुराण बने है। इनमे सबसे आदि पुराण ब्राह्म-पुराण ही है। इस कथा से माल्रूम होता है कि व्यासजी ने सब सहिताएँ नही लिखी थी। उन्होने किसी एक मूल सहिता की कथा अपने शिष्य को सुनाई धी । वही से शिष्य-प्रशिष्यो ने इन सहिताओो की अलग-अलग रचना की । वस्तुतः पुराणों की परीक्षा से इतना तो स्पष्ट ही है कि मूल रूप मे ये काफी पुराने है, पर इसमे भी सन्देह नही रह्‌ जाता कि अपने वर्तमान रूप मे ये अनेक लोगो की नाना उदेश्य से लिखी हुई कथाओं के सग्रह है 1 पुराणो के अध्ययन से कु वाते तो स्पष्ट ही आधुनिक जान पडती है । त्राह्य पुराण को यद्यपि आदि पुराण कहा जाता है पर उसमे उड़ीसा के तीर्थो कै माहात्म्य का विशेष विवरण है जो निश्चय ही वाद का होना चाहिए। साधारणत सन्‌ ईसवी की वारहवी शताव्दी तक इसने वर्तमान रूप धारण कर लिया होगा । पद्मपुराण मे बौद्धो ओौर जैनो की वाते है गौर उसके पिछले खड ओर भी नये जान पडते है । विष्णुपुराण मे प्राचीनता के सभी लक्षण विद्यमान है। विष्णु के किसी बडे मन्दिर या मठ आदि की चर्चा इसमे नही आती । रामानुजाचायं ने इस पुराण के वचन उद्धृत किये है । किसी-किसी ने अनुमान किया है कि विष्णुपुराण मे उल्लिखित कंलकिल या যা कंकिल यवनो ने आन्ध्रदेश मे ५०० से ९०० ई० तक राज्य किया था, अतः इस पुराण का काल नवी शतान्दी से अधिक पुराना नही होना चाहिए । पर यह्‌ केवल कल्पना-ही-कल्पना है, किसी ऐतिहासिक प्रमाण से सिद्ध नही है । वायुपुराण सम्भ- वतः पुराने पुराणो का एक नमूना है 1 उसमे प्राचीनता के सभी लक्षण विद्यमान है । श्रीमदुभागवत समस्त पुराणो मे अधिक प्रसिद्ध गौर सारे भारत मे समाहत है । इसमे जो कवित्व है, वह वहुत ही ऊँचे दर्ज का है। रामायण और महाभारत की मति इसने भी भारतीय साहित्य को बहुत दूर तक प्रभावित किया है। अकेले बगाल मे ही इसके चालीस से अधिक अनुवाद हैं । हिन्दी मे भी इसके दशम स्कन्ध के अनुवादो की सख्या इप्रसे कम न होगी । हिन्दी का गौरवभरूत काव्य सूरसागर भागवत द्वारा ही प्रभावित ই किसी-किसी ने यह्‌ अफवाह उडा रखी है कि भागवत कै कर्तां वोपदेव है, पर असल मे वोपदेव ने भागवत के अनेकं वचन सग्रह करके एक निवन्ध-ग्रथ लिखा था । भागवत पुराण काफी पुराना है। सबसे बडी वात यह्‌ है कि अन्यान्य पुराणो की अपेक्षा यह एक हाथ की रचना अधिक है। इसमे विष्णु के सभी अवतारो का वर्णन है। विशेष रूप से श्रीकृष्ण अवतार की कथा है। नारदीय और बृहन्तारदीय पुराण वहुत-कुछ माहात्म्य ग्रन्थ-से है और उत्तरकालीन रचना जान पडते है । माकंण्डेय पुराण भी काफी पुराना है यद्यपि किसी-किसी ने इसे नवी-दसवी गताब्दी की रचना सिद्ध किया है। अग्निपुराण नाना विषयो का एक विज्ञाल विश्वकोष है। नाना भारतीय विद्याएँ, जिन पर लिखे गये स्वतन्त्र ग्रथ अधिकाश लोप हो गये है, इसमे सुरक्षित है। भारतीय साहित्य के विद्याथियो के लिए इसका मूल्य बहुत अधिक




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