प्रेमचंद की उपन्यास -कला | premachand kee upanyaas - kala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४ विषयप्रवेश
की सुगमता का अनुभव करते थे, कन्तेव्य-चेष्टा को कान्ति से
'बचाये रखने की सुविधा पाते थे। जीवन-व्यापार की
प्रत्येक दिशा मे इस. कला का खच्छन्द प्रवेश था, जीवन-
प्रवाह की एक-एक गति पर इसका प्रेमपूर्ण नियंत्रण था।
इसका काम केवल हँसाना, सुज्ञाना, मनोरंजन करना तथा
उपदेश देना ही नहीं था; समाजनीति, धर्मनीति, राज-
नाति, दशेन ओर साधारण शिष्टाचार से सम्बन्ध रखने
वाली छाटी-मोटी बातों पर भी इसी के द्वोरा प्रभाव डालने
की चेष्टा की जाती थी। बड़े-बड़े ज्ञानोपासकों तथा
धर्मापदेशकों ने इसी की सहायत। से अपने कर्म-पथ को झुगस
बनाया, उद श्य-सिद्धि के प्रयत्न में सफलता पधाप्त की ।
सामाजिक तथा कलात्मक स्थिति के परिवत्तन-चक्र-
द्वारा परिचाल्ित मानव-प्रवृत्ति, जेसे-जैसे अपनी प्रेरणा को
प्रगतिशील बनाती जाती है वैसे-दही-वेसे
इसके विस्तार उसमें उद्धावना-शक्ति का विकास होता
र जाता है और उसी के फत्न-स्वरूप होता है
कथा-साहित्य के वेभव का विस्तार ।
के क्षेत्र में इस प्रकार की ग्ररणा और
उद्धावन'-शक्ति का- प्रथम साज्षात्कार हमें 'रानी केतकी
की कहानी ने कराया । हमारे कथा-साहित्य के इतिहास
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