प्रेमचंद की उपन्यास -कला | premachand kee upanyaas - kala

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premachand kee upanyaas - kala by जनार्दन प्रसाद - Janardan Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ विषयप्रवेश की सुगमता का अनुभव करते थे, कन्तेव्य-चेष्टा को कान्ति से 'बचाये रखने की सुविधा पाते थे। जीवन-व्यापार की प्रत्येक दिशा मे इस. कला का खच्छन्द प्रवेश था, जीवन- प्रवाह की एक-एक गति पर इसका प्रेमपूर्ण नियंत्रण था। इसका काम केवल हँसाना, सुज्ञाना, मनोरंजन करना तथा उपदेश देना ही नहीं था; समाजनीति, धर्मनीति, राज- नाति, दशेन ओर साधारण शिष्टाचार से सम्बन्ध रखने वाली छाटी-मोटी बातों पर भी इसी के द्वोरा प्रभाव डालने की चेष्टा की जाती थी। बड़े-बड़े ज्ञानोपासकों तथा धर्मापदेशकों ने इसी की सहायत। से अपने कर्म-पथ को झुगस बनाया, उद श्य-सिद्धि के प्रयत्न में सफलता पधाप्त की । सामाजिक तथा कलात्मक स्थिति के परिवत्तन-चक्र- द्वारा परिचाल्ित मानव-प्रवृत्ति, जेसे-जैसे अपनी प्रेरणा को प्रगतिशील बनाती जाती है वैसे-दही-वेसे इसके विस्तार उसमें उद्धावना-शक्ति का विकास होता र जाता है और उसी के फत्न-स्वरूप होता है कथा-साहित्य के वेभव का विस्तार । के क्षेत्र में इस प्रकार की ग्ररणा और उद्धावन'-शक्ति का- प्रथम साज्षात्कार हमें 'रानी केतकी की कहानी ने कराया । हमारे कथा-साहित्य के इतिहास




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