गोस्वामी तुलसीदासजी | Goswami Tulsidasji

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Goswami Tulsidasji by रामचन्द्र शुक्ल - Ramchandar Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन खंड 1 . १ 'इस लेखः में गोखामी. तुलसीदासजी के एक नवीन “चरित” का चत्तांत लिखा है और . उससे उद्धरण भी ..लिए गए हैं। लेख इस अकार है- + 35 * “गोखामीजी का-जीवनचरित उनके शिष्य महायुभाव मदात्मा स्घुचरदासजी ने लिखा है। इस अ्ंथ का नाम “तुलसीचरिति» है। यद्‌ वड़ा ही चूहद्‌ अंथ है | इसके मुख्य चार खंड हैं--( १) अवध, (२) काशी, (३) नर्मदा. और ( ४ ) मथुरा | इनमें भी अनेक उप- खंड हैं। इस अंथ की संख्या इस प्रकार लिखी हुई है--“चौ० एक लाख तेँतीस हज़ार। नौ सै बाखठ छुंद उदारा”! यद अंथ महाभारत से कम नहीं है । इसमे गोखामीजी के जीवनश्चस्ति-विपयक मुख्य मुख्य चुत्तांत. नित्य प्रति के लिखे हुएए हैं। इसकी कविता अत्यंत्त मधुर, सरल और .मनोरंजक है। यह कहने में अत्युक्ति नहीं होगी कि गोखामीजी के भिय शिष्य महात्मा रघुवरदासजी चिरचित इस आदरणीय अंथ की कचिता श्रीयामचसितिमानस के टक्कर की है और यह “तुलसीचरित” बड़े महत्त्त का अंथ है। इससे पाचीन समय की सभी वातौ का विशेष परिज्ञान दोता है । इस-मा्ननीय चहदु धथ के अवध खंड” में लिखा है कि जब श्रीगोखामीजी घर से विरक्त हो कर निकले, तो रास्ते में रघुनाथ नामक एक पंडित से भेंट हुई और गोखामीजी ने उनसे अपना खवः चृतति कहा - ` । गोखामीजी का चचन :-- . चोपाई 1 काल: अतीत यमुन तरंनी :के। रोदन करत चले জু फीके ॥- हिय बिराय तिय अपमित. वचना | कंठ मोद वैडी निज रचना ॥ खींचत त्याग: विराग- बटोही | मोह गेह दिसि कर सत खोही 1: भिरे गल बल वरनि न जाद्य.। स्पदन. चपू खेत वन माही ॥ विनिर्हु दिश्वा श्रपथ महि कारी । राड कोस मिलिन की पारी ॥ पहुँचि झाम -तट छुतरू रखाला | चैंठेईँ - देखि. भूमि. छविसाला ॥-




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