1929 धर्म-प्रज्ञति-1 | 1929 dharm-pragyati-1

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मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका प्रस्तुत प्रन्य दशवेकालिक का वर्गीक्षत रूप है। दह्वंकालिक का मूल सूत्रों में पहछा स्थान है। इसके दस अध्ययन है। यह विकाल में रचा गया, इसलिए इसका नाम दक्षवेकालिक रखा गया । इसके कर्त्ता श्रुतकेवली आचार्य शम्यंभव है। अपने पुत्र- शिष्य सनक के लिए उन्होंने इसकी रचता की । वीर संवत्‌ ७२ के आस-पास “चम्पा' में इसकी रचना हुई । इसकी दो चूलिकाएँ है । दशवंकालिक अति प्रचलित और व्यवहृत आागम-प्रन्य है । अनेक व्याख्याकारों ते अपने समर्थत के लिए इसके सदर्भ-स्थलो को उद्धृत किया है । यह एक तिर्यूहण कृति है, स्वतत्र नहीं। आचार्य হাসন श्रुतकेवली थे । उन्होंने विभिन्‍न पूर्वों' से इसका निर्येहूण किया, यह एक मान्यता है। दूसरी मान्यता के अनुसार इसका नियहण गणिप्टिक द्वादशाड़री से किया गया । यह सूत्र ख्वेताम्वर और दिग्म्बर दोनो নকলা में मान्य रहा है। खेताम्बर इसका समावेश उत्कालिक सूत्र में करते हुए इसे वरण-करणानुयोग के विभाग में स्थापित करते हैं। इसके




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