धर्माधर्म विचार | Dharmaadharm Vichar
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धर्माधभेविचार ' श
रक््खीगयी सकौर में रजिस्ट्री कीगयी मित्रमण्डली
को.जुलाकर वेश्यों बुलाकर महफिल रचीगयी बाग-
बाड़ी-आतशबाजी-बखेर-हाथी-घोड़े .सव तयार
इए । दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा बरात चढ़ी सब जडूस उठा
बहुत घूम घाम हुई वेश्या के नाच से बाजारों में इतनी
भीड़ हुई कि रास्ते बन्द होगये । बागबाड़ी छुटी
स्रातिशबाजी इरी नमर मं वाह २ खुशामदी लोगो ने
करी खूब लोगों ने कोतुक देखे शेक दै जिन भगी
-चमास के स्पश से सचैल स्नान कियाजाता है बह
आएरते के संमय समधी के छार पर लगे बखेर लूटने
वह नीच लोग सब को दूते हए धरो मे स > कर
बसेर ल्टनेलगे खियां भी भगी अदि नीच पुरुषों से
छुदगयी कहंनेलगी क्या डर हे बरात का भोजन
' श्रीजगन्नाथजी का भात है भला जोनार के समय क्या
न्हायाजाता है-क्या कपड़े घोवें विवाह के समय छुवा
छूत नहीं मानीजाती चलो अव कोटे पर से विवाह के
नाच का आनन्द देखें वेश्या केसे मीरे स्वर्यो से गाली
गारही है।
लङ्का बोला पिताजी मेने कन्यादानं प्रतिग्रह
लिया है प्रायश्चित्त के लिये कुछ घन दान करादो
पुरोहितजी कहते हैं यह छुन पिताजी चपचाप उठकर
बल दिये-विवाह होगया लड़के ने विनय की हे पिता
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, जितना.घन आपने व्यय किया नाच तमाशे आदि में
চিত
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