ब्रह्मचर्य पर महात्मा गाँधी के अनुभव | brahmachary par mahaatma gaandhee ke anubhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ) निक्र किया गया ६, कमी भी ध्राङृतिक माना ज्व सकता है। यदि ऐसा हो तो शीघ्र ही प्रलय ष्टो जाय । सख्ती भर पुरुष के बीच फा प्राकृतिक सम्बन्ध भाई धीर यदिन, माता शौर पुत्र, और पिता भौर लड़की का आकर्षण है । यही प्राकृतिक आकर्षण संसार फों धारण करता है। यदि मैं सारी स्ली जाति फो यहिन, लद़की, या माँ की दृष्टि से न ऐख्‌” तो मेरे लिये काम करना तो दूर रहा, जीना भी असम्भव हो जाय। यदि में कामुक दृष्टि से उनको निहारू वो प्रलय का पठा रास्ता वन लाय। `. यद दीक कि सत्तानोत्पत्ति प्राकृतिक घटना है; किन्तु तव, जब कि “ধর निश्चित सीमाशों के भीतर हो। उन सीमाशों का उल्लंघन ख्री- जाति को ख़तरे में डाल देता है, वंश को दुर्वज्ष बनाता है, रोगों को उसाहता है, पाप को, प्रोत्साइन देता दै, श्रौर संसार फो रारसी बनाता है । फामुक वासनाश्रो के चंगुल मे पदा हुशरा पुरुष बिना रोक- थाम का सनुष्य है । थदि ऐसा मनुष्य समाज का पय-अदृशक बने, डसे अपने लेखों से प्लाबित कर दे भौर जनता उन्हीं के इशारे पर चल्ले, বী জমার का जया द्वोगा? फिर भी भ्राज दिन' यही बात तो द्वो रही है । मान लिया कि पुक लालदेन के आसपास चकर लगाने- बाला पतिंगा अपने शणिक आनन्द की घड़ियों को शक लेता है भौर हम दमे श्रादश सानकर उसकी नकल करते हैं, तो हमारी क्या दशा होगी ? नहीं, में अपनी सारी शक्ति के साथ इस बात की घोपणा फरना चाहता हूँ कि पति और पत्नी के बीच में श्री कामुक आकर्पण ग्रप्राकृतिक है । विवाद दग्पति के हृदयों से गन्दी कामलिप्सा को शुद्ध करने और उन्हें परमात्मा के निकट पहुँचाने. के लिये होता है। प्रति




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