गुरु - शिष्य -सत्संग | Guru-Shishya-Satsang
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)জি वि 3
प्रथम पल्ली |
प्रथम दशन |
~ 404 ~
स्थान-कलकत्ताः प्रियनाथजीका भवन, वागृबाङ्गार
वपे- १८६७ खष्टाब्द् ।
विपप--खामीजीके साथ शिष्यक्ता प्रधपर परिचथ--पिरर
. सम्पादक भ्री नरेन्द्रगाधनीके साथ वात्तालाप--इंग्लेण्ड और अपे-
'रिकाकी तलना पर विचार--पारचात्यमें भारतवाएियोंरे এল
प्रचारका भविष्यद फल--भारतका कल्याण धम्ममेंणा राजनतिक
चचमैं--गोरशा-प्रचारकफे साथ भेंट--मनप्यकी रक्षा करना
पदिला कर्तव्य
तीन चार दिन हुए कि स्वामीजी महाराज प्रथम
यार विलायतसे लौट कर कलकत्ता नगरमे पधारे है ।
यहुत दिनो पीछे आपके पुएयद्शन होनेसे रामकृष्णुसक्त-
गण वहुत प्रसन्न हो रहे हैं। उनमेंसे जिनकी अवस्था
अच्छी है, वे स्वामीजी महाराजको सादर अपने घर पर
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