गुरु - शिष्य -सत्संग | Guru-Shishya-Satsang

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
guru - shishy -satsang (puraraav kaand ) by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
জি वि 3 प्रथम पल्ली | प्रथम दशन | ~ 404 ~ स्थान-कलकत्ताः प्रियनाथजीका भवन, वागृबाङ्गार वपे- १८६७ खष्टाब्द्‌ । विपप--खामीजीके साथ शिष्यक्ता प्रधपर परिचथ--पिरर . सम्पादक भ्री नरेन्द्रगाधनीके साथ वात्तालाप--इंग्लेण्ड और अपे- 'रिकाकी तलना पर विचार--पारचात्यमें भारतवाएियोंरे এল प्रचारका भविष्यद फल--भारतका कल्याण धम्ममेंणा राजनतिक चचमैं--गोरशा-प्रचारकफे साथ भेंट--मनप्यकी रक्षा करना पदिला कर्तव्य तीन चार दिन हुए कि स्वामीजी महाराज प्रथम यार विलायतसे लौट कर कलकत्ता नगरमे पधारे है । यहुत दिनो पीछे आपके पुएयद्शन होनेसे रामकृष्णुसक्त- गण वहुत प्रसन्न हो रहे हैं। उनमेंसे जिनकी अवस्था अच्छी है, वे स्वामीजी महाराजको सादर अपने घर पर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now