उत्तर की दीवारें | Utter Ki Deewaren

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काका कालेलकर - Kaka Kalelkar

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दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर - Dattatrey Balkrashn Kalelkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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म्‌ कूछ ही दिनोमें मेरी बदली फॉसी-खोलोसें हो गओ। फॉसी-खोली यानी फॉसी देनेके स्थानके पास ही बनी हुओ, फॉसीके कैदियोको रखनेकी आठ कोंठरियाँ। सावरमती जेलमे यह स्थान सबसे अच्छा माना जानेसे स्वामी, वालजीभाओ, प्राणशकर भट्ट आदि लोगोको यहाँ रखा गया था! स्वामी तो गांधीजीवाली कोठरीमे ही रहते थे। सुझे कदाचित अधिक समय तक यहाँ नहीं रखा जायेगा, जिस झंकासे स्वामीने आग्रहपूर्वक गाधीजीकी कोठरी मुझे रहनेके लिझ दे दी$ अँची दीवारकी दूसरी ओर स्त्रियोके रहनेका स्थान था। यहाँ फॉसी- खोलीमें आकर सुझे जअेक तरहसे पश्चात्ताप ही हुआ। दीवारकी दूसरी ओर स्त्रियों दोपहरी भर कपड़े घधोती, अुनके बच्चे रोते और कोढ़मे खाजकी तरह पाँच-दस स्त्रियों झगड़ेका अखण्ड प्रवाह जारो रखती। जेलके कष्द सहनेको से तेयार था, किन्तु असा काबर-कलह सुननेको तेयार न था। किन्त्‌ दो चार दिनसें या तो मेरे कान जिससे अभ्यस्त हो गये या फिर “अरतौ * मे जाञी हभी नी स्त्रियां पुरानी हयी यमी, भिसचिभे झगड़ेका प्रवाह अपेक्षाकृत कुछ कम हुआ-सा रूगा। > > > फॉसी-खोलीमें आते ही दो बिल्लियोसे भिन्नता हये गओ \ अकका नाम या ‹ फोजदार ` ओर द्‌सरीका ` हीरा `¦ अस्पतालसे प्रतिदिन अक छर्टांक दूध जिन बिल्लियोको दिये जनेकी “ खानगी व्यवस्थाः थी! खानमी व्यवस्था यानी उंक्टर या जेलरके हुक्सके चिना ही कौ शी वं चली आती हुओ व्यवस्था । जेर चिभागसरे असी छोटी-छोटी अनेकों व्यवस्थायें होती हं ! केदी तथा अन पर निगरानी रखनेवार नौकर ९




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