तुलसीदास की जीवनी | Tulshidas ki jivani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) इस उल्लेख के आधार पर प्रियेसन प्रभ्नति विद्वानों ने इस अन्ध की खोज की परन्तु इसे प्राम करने मे असफल रहे | इधर डा० माता- असाद गुप्त ने शिवसिंह के दिये हुए उद्धरण के आधार पर इस ग्रन्थ का पता लगाया है।। यह ग्रन्थ १६२७ ई० में नवलकिशोर प्रेस से प्रकाशित रामचरितमानस में “जीवन चरित्र” के शीर्षक से जुड़ा हुआ है । यह जीवन चरित्र बहुत वृहद हे परन्तु इसके लेखक का नाम चेनीमाबबदास नहीं, भगवानदास है। डा० माताप्रसाद का मत है. कि यह जीवनी १७४१ के लगभग लिखी गई होगी । इस जीवनी का आवधार भी जनश्र॒ ति और भक्ति भावसा है । भक्तमाल (नाभादास) में तुलसीदास के संबंध में केचल एक छप्पय है। उसमें तुलसीदास को वाल्मीकि का अवतार कहा गया है ओर उनके ग्रन्थ की महिमा गाई है परन्तु इससे तुलसीदास के जीवन पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता | महत्व की चात केवल यह है कि नाभादास ने तुलसी के लिए बरतेमान काल की क्रिया का प्रयोग किया है_ जिससे जान पड़ता है. कि भक्तमाल की रचना के समय तुलसी अवश्य विद्यमान थे । “वार्ता” से तुलसी के संबंध में छुछ विशेष जानकारी प्राप्त की जा सकती है, परन्तु विद्वानों ने अभी उसकी उपेक्षा ही की है। वार्ता” ओर उसकी प्रामाणिकता के संबंध में चिद्वानों में मतभेद हे । वातां की कथा स्पष्टठटः आचाये महाप्रभ्ुं और कृष्णु-भक्तों की महिमा-बृद्धि के लिए है, इसलिए विद्वानों का उसकी प्रामाशिकता के संबंध में सन्देह करना आश्चय की वात नहीं है । यह गोकुलनाथ की लिग्वी बताई जाती हे परन्तु डा० घीरेन्द्र वर्मा ने यह सिद्ध कर दिया है कि इसका लग्यक बही नरी है जो चौरासी वातां का लेखक दहै च्रोर इसमे गोकुलनाश के वहत वाद ( १५६ चि ) तक की सामयी मिलती हे । डा० माताप्रसाद गुप्त का मत है कि प्रियादास की टीका और वाताँ की कथाओं का आधार बहुत कुछ एक ही सामग्री है जो कदाचित्‌ उस समय जनश्रुति के रूप में उपस्थित थी। उन्होंने विस्तारपूवंक दोनों ग्रन्थों की आश्वयंजनक घटनाओं की तलना की है | इस मत




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