लिपि - विकास | Lipi Vikas

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Lipi Vikas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लिपि का आविष्धार ६ ~^ ~~~ ~ ~~ ~ ~~~ ~ ^ ^~ ~~~ ~ ~ ( ख ) अच्ष! ( 591900)लिपि---तत्स्थात्‌. लेखन- म्रणालो को सरल करने के लिए ज्ञिन शब्दके आदि में समानं अक्तेर (एकाच पद अथवा पदांश ) था उनको एकचित्र केरफे सब सम्मिलित अक्षर का प्रथक ध्वनि चिन्ह आने लगा अर्थात्‌ च्द्याक्तर सिद्धान्तामुतार सांकेतिक ध्वनि चिन्द आक्षरिक संकेतों के लिए प्रयुक्त होने लगे | आत्तरिक विन्दो का निर्माण होने पर उनको सयुक्त करके अनेकाक्षरों का बोध कराया जाने लुपो) इस प्रकार बहुत से अनेक ध्वति वोधघरू ( ?01ए79007ां० ) प्रतीक बन गए, जिनके अर्थ का सरपष्टोकरण करने के लिए अनेकों विशेषणो का प्रयोग दोने क्षगा । ये विशेष्ण विशेष तथा जाति बोधक् दो प्रकार के होते थे । उदाहरणार्थ मिस्री-लिपि में चिन्ह सं० ६९ में प्रथम दो घ्वति-वोधक संक्रेत 'सेर' की ध्वनि के प्रतीक | इनके बाद एक पशु का चित्र है । वह पशु चित्र विशेषण विशेष द । जाति बोधक विशेषण केवल मुख्य मुख्य स्थलों पर दी प्रयुक्त होते थे, जैसे 'चक्ष! का प्रयोग दृष्टि सम्बन्धी शब्दों के लिए, दो टॉगो! का प्रयोग चलने से सम्बन्ध रखने वाले शब्दों के लिए और वत्तत्र' का प्रयोग पन्षीसांत्र के लिए होता था। यही कारण है कि विशेष विशेषण तो बहुत से थे परन्तु जाति बोघक विशेषण वहुत थोड़े थे। मौखिक लिपि से आक्षुरिक लिपिके विकास का सर्वोत्तम उदा- दरण चीनी लिपि से जापानी लिपि का उद्भव है । इस परिवर्तन सें विज्ञातीय संसर्ग अत्यन्त सद्दायक है । यद्यपि चीनी आज तक मौखिक लिपि से आगे न बढ़ सकी, परन्तु जापानियों ने, जिनकी भाषा अनेकाक्तरी थी, चीनी वर्णों को आक्षरिक चिन्हों के रूप में भयोग करना आरम्भ कर दिया, जेसे चीनी सांक्रेतिक শিন্হী सि , न॑० २२, कासाकाना (जापानी ) में नं० २३ के




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