मुद्रा राक्षस नाटक | Mudraraksas - Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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গু । और में उनके पहने हुए भूपण शुणवान ब्राह्मणों को समर्पित कर
दाह)
चारक्य--( दपूव स्वगत ) बाह ! चंद्रगुप्त | वाह ! सेरे ही
मन के साथ मंत्रणा करके तुमने यह संदेश दिवा दहै! ( प्रकट )
शोखेत्तरा ! मेरी श्चौर से चन्दरयुप्तं से कद दैना कि--वाह वेग!
चाह ! तुम लोक:ध्यवद्वार को भल्ती भांति जानते हो, तो अपने मन की
खचात कर डाली । परन्तु पर्वतेश्वर के पहने हुए वहु-मूल्य अलंकार
शुणवान ब्राह्मणों को हो समर्पित करने चाहिएँ । इसलिए ऐसे बाह्मणों
को में स्वयं गुण-परीक्षा के बाद भेजूँ गा ।
प्रतिदारी--जो श्रार्य की आज्ञा ।
। ( प्रस्थान )
चाणक्य--शाङ्ग रच ! शाङ्ग^रव ! विश्वावसु आदि तीनों मादयों
सेमरी श्रोर से कद दो कि---श्राप लोग चन्द्रगुप्त के पास जाय
ओर भूषण दान लेकर मुरूसे मिर्ले ।
शिष्य--जो शुरु जो की श्राक्ता।
( प्रस्थान )
चाणक्य---(स्वागत) यह्द बात तो पीछे से लिखने की है, पहले
कया लिखे? (सोचकर) हां, जान गया। मुमे गुप्तचरों से पता लगा है
ক্ষি--ভল यवनराज को सेना में प्रतानतम पांच राजा श्रन््धे होकर
-राक्तस के पोछे चढमते हैं ।
कौलूत चित्रव॒र्मा नरपति, नूसिंह सिंहनाद मलयेश
अरि-्यम पिधुसेन सिंधु-पंति, पुष्करात कश्मीर नरेश
हय-बल-युत मेषातत नृपति वह पंचम पारसीक-अधियज्ञ, - *
इसे सास यहां मे लिखता, मैदे चित्रगुप्त वह् आज ॥२०)
(सोचकर) अथवा नहीं लिखता, सब कुछ गोल-माल ही रहे
বসন) হাক ভে ! হাক रब !
( शिष्य का प्रवेश )
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