मुद्रा राक्षस नाटक | Mudraraksas - Natak

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Mudraraksas - Natak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€ ৩) গু । और में उनके पहने हुए भूपण शुणवान ब्राह्मणों को समर्पित कर दाह) चारक्य--( दपूव स्वगत ) बाह ! चंद्रगुप्त | वाह ! सेरे ही मन के साथ मंत्रणा करके तुमने यह संदेश दिवा दहै! ( प्रकट ) शोखेत्तरा ! मेरी श्चौर से चन्दरयुप्तं से कद दैना कि--वाह वेग! चाह ! तुम लोक:ध्यवद्वार को भल्ती भांति जानते हो, तो अपने मन की खचात कर डाली । परन्तु पर्वतेश्वर के पहने हुए वहु-मूल्य अलंकार शुणवान ब्राह्मणों को हो समर्पित करने चाहिएँ । इसलिए ऐसे बाह्मणों को में स्वयं गुण-परीक्षा के बाद भेजूँ गा । प्रतिदारी--जो श्रार्य की आज्ञा । । ( प्रस्थान ) चाणक्य--शाङ्ग रच ! शाङ्ग^रव ! विश्वावसु आदि तीनों मादयों सेमरी श्रोर से कद दो कि---श्राप लोग चन्द्रगुप्त के पास जाय ओर भूषण दान लेकर मुरूसे मिर्ले । शिष्य--जो शुरु जो की श्राक्ता। ( प्रस्थान ) चाणक्य---(स्वागत) यह्द बात तो पीछे से लिखने की है, पहले कया लिखे? (सोचकर) हां, जान गया। मुमे गुप्तचरों से पता लगा है ক্ষি--ভল यवनराज को सेना में प्रतानतम पांच राजा श्रन्‍्धे होकर -राक्तस के पोछे चढमते हैं । कौलूत चित्रव॒र्मा नरपति, नूसिंह सिंहनाद मलयेश अरि-्यम पिधुसेन सिंधु-पंति, पुष्करात कश्मीर नरेश हय-बल-युत मेषातत नृपति वह पंचम पारसीक-अधियज्ञ, - * इसे सास यहां मे लिखता, मैदे चित्रगुप्त वह्‌ आज ॥२०) (सोचकर) अथवा नहीं लिखता, सब कुछ गोल-माल ही रहे বসন) হাক ভে ! হাক रब ! ( शिष्य का प्रवेश )




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