लंका महाराजिन | Lanka Maharajin
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
82.8 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हुइ रू लंका मद्दराजिन
त्ाती । पर बह केवल श्रपने जिले भर की बाते” करतीं, यानी झपने दी घर
की | ऋधघिकतर बाते मेरी सामी के विषय की होतीं । दोन्वार अच्छी श्री
दस-बीस खरात्र । पर बाते घुल सिल कर होती, दो सखी जेसी ।
अर कमी-कभी लड़ाई भी होती, तनातनी के रूप में । पर वह शधिक
दिन न चलती | सइराजिन का आना बन्द हो जाता । नानी उदास होतीं ।
एक सूनांपन रहता । मददराजिन के दाने का समय होता तो दरवाजे पर
कर बैठ जातीं । मददराजिन आतीं और देखकर श्रागें बढ़ जातीं । नानी भी
मुँह घुमा लेतीं । कहीं शान में बा न लगे । पर मुँह जब सीधा करतीं तो
_...' मददराजिन की छाया खो चुकी होती । रहा न जाता । उठतीं, चबूतरे के किनारे
तक श्रातीं श्रौर काँक कर गली में मोड पर घूसती हुई महदराजिन को देखती |
तमी किसी श्रोर से कोई श्रवश्य आता दिखाई पड़ता और टपट नानी
चौोखट के भीतर हो सेतीं ।
पर यह शसदयोग श्धिक दिन तक न चल पाता । सहराजिन को
ही भुकना पढ़ता। जिस दिन नानी चोखट 'पर न होकर घर में रददतीं तो
मददराजिन भीतर चली ्रातीं । नानी देखतीं तो ख़िन्ल उठतीं । श्रौर
,'..... केवल यह पूछुकर, “बहू, सब ठीक है” मददराजिन झपना संघिपत्र श्रागे
: बढ़ा देतीं |
पर यह मित्रता श्र मेल केवल नानी के दी संग है । मुददल्ले के शन्य
_ हिस्सों में महराजिन का नाम बदनाम है । वह श्पने चिड़चिड़ेपन, भयानक
आकृति आर मन-दी-मन सुनभुना कर श्राप देने के लिए बदनाम थीं । यद्यपि
' किसी के यहाँ जाने की मनाद्दी नहीं थी | दर के घर का दरवाजा उनके
पक लिए सदा खुला रहता था । श्र भला किसमें इतनी दिग्मत थी कि उनसे
|... कुछ कददता |
एक दिन महदराजिन बड़बड़ाती हुई आई । द्वार तक श्ाई दर लौट
_...... गईं। जैसे कुछ सोच कर श्राई और भूल गईं । नानी ने समका, मददराजिन
नाराज हैं। लाख पुकारा पर न लौटीं । इधर महराजिन कमी-कंभी ऐसी बन
; ! पी «जाती हैं, कि समझ में नददीं श्राता कि उन्हें कया हो गया है |
....... छोटी लाइन के गोंपीगज स्टेशन से उत्तर को पक्की सड़क गईं है । बह
डा दी सडक तो श्रपने रास्ते गई है, पर एक मील आगे जाकर दक्षिण की श्लोर जो
.... पंगदशडी फूट गई है उसी पर श्रागे चल कर महदराजिन का गाँव है।
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