अस्सी दिन में दुनिया का चक्कर | Assi Din Men Duniya Ka Chakkar

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Assi Din Men Duniya Ka Chakkar by श्री औंकार शरद - Onkar Sharad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'तो फिर कर के दिखा दो न ! सैलानी ने कहा, अस्सी दिन में पृथ्वी का चक्कर ?' 'जीहाँ।' बडी खुशी से ।' “अब ?' इसी समय लेकिन मैं तुमसे एक बात कहे देता हूँ। इस यात्रा का सारा खर्च तुम्हारे ही मत्ये मढा जायेगा । बैंक मे मेरे वीस हजार पाउन्ड जमा हैं। यदि तुम कहो तो मैं खुशी से उनकी वाजी लगाने के लिये तैयार हूँ ।' सैलानी के एक मित्र ने कहा, अरे भाई ग्यलानी, ऐसी बेवकूफी का काम मत करे । बीस हजार पाउन्ड थोड़े नहीं “होते । अगर रास्ते मे जरा भी गडबड़ी हो गयी तो इतनी बडी रकम से हाथ घो बैठोगे।' सैलानी ने कहा, * अजी, कहाँ की गडवडी लगायी है ?' 'लेकिन अस्सी दिन से ज्यादा तो नहीं लगेग ?' *. सैलानी बोला, 'अरे माई, कह तो दिया कि अस्सी दिन से न एक मिनट कम और न एक मिनट ज्यादा ।' 'अजी, तुम हँसी कर हरे हो ।' सैलानी ने जवाब दिया, 'जव हमारी तुम्हारी पक्की पूरी हो चुकी तो फिर हँसी कैसी ? अगर मुझे पृथ्वी का चक्कर लगाने में अस्सी दिन से ज्यादा लग जायें तो फिर बीस , हजार पाउण्ड तुम्हारे हुये। अब तो राजी हो न ?” सब लोगो ने आपस में सलाह कर के कहा, 'हाँ राजी हैं। अच्छा तो फिर लो मिलाओ हाथ। पक्की रही ।' सैलानी ने हाथ मिला कर कहा, 'पककी रही। गाड़ी 1153




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