लंका महाराजिन | Lanka Maharajin

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Lanka Maharajin by Okar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री औंकार शरद - Onkar Sharad

Add Infomation AboutOnkar Sharad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हुइ रू लंका मद्दराजिन त्ाती । पर बह केवल श्रपने जिले भर की बाते” करतीं, यानी झपने दी घर की | ऋधघिकतर बाते मेरी सामी के विषय की होतीं । दोन्वार अच्छी श्री दस-बीस खरात्र । पर बाते घुल सिल कर होती, दो सखी जेसी । अर कमी-कभी लड़ाई भी होती, तनातनी के रूप में । पर वह शधिक दिन न चलती | सइराजिन का आना बन्द हो जाता । नानी उदास होतीं । एक सूनांपन रहता । मददराजिन के दाने का समय होता तो दरवाजे पर कर बैठ जातीं । मददराजिन आतीं और देखकर श्रागें बढ़ जातीं । नानी भी मुँह घुमा लेतीं । कहीं शान में बा न लगे । पर मुँह जब सीधा करतीं तो _...' मददराजिन की छाया खो चुकी होती । रहा न जाता । उठतीं, चबूतरे के किनारे तक श्रातीं श्रौर काँक कर गली में मोड पर घूसती हुई महदराजिन को देखती | तमी किसी श्रोर से कोई श्रवश्य आता दिखाई पड़ता और टपट नानी चौोखट के भीतर हो सेतीं । पर यह शसदयोग श्धिक दिन तक न चल पाता । सहराजिन को ही भुकना पढ़ता। जिस दिन नानी चोखट 'पर न होकर घर में रददतीं तो मददराजिन भीतर चली ्रातीं । नानी देखतीं तो ख़िन्ल उठतीं । श्रौर ,'..... केवल यह पूछुकर, “बहू, सब ठीक है” मददराजिन झपना संघिपत्र श्रागे : बढ़ा देतीं | पर यह मित्रता श्र मेल केवल नानी के दी संग है । मुददल्ले के शन्य _ हिस्सों में महराजिन का नाम बदनाम है । वह श्पने चिड़चिड़ेपन, भयानक आकृति आर मन-दी-मन सुनभुना कर श्राप देने के लिए बदनाम थीं । यद्यपि ' किसी के यहाँ जाने की मनाद्दी नहीं थी | दर के घर का दरवाजा उनके पक लिए सदा खुला रहता था । श्र भला किसमें इतनी दिग्मत थी कि उनसे |... कुछ कददता | एक दिन महदराजिन बड़बड़ाती हुई आई । द्वार तक श्ाई दर लौट _...... गईं। जैसे कुछ सोच कर श्राई और भूल गईं । नानी ने समका, मददराजिन नाराज हैं। लाख पुकारा पर न लौटीं । इधर महराजिन कमी-कंभी ऐसी बन ; ! पी «जाती हैं, कि समझ में नददीं श्राता कि उन्हें कया हो गया है | ....... छोटी लाइन के गोंपीगज स्टेशन से उत्तर को पक्की सड़क गईं है । बह डा दी सडक तो श्रपने रास्ते गई है, पर एक मील आगे जाकर दक्षिण की श्लोर जो .... पंगदशडी फूट गई है उसी पर श्रागे चल कर महदराजिन का गाँव है। 1 ) न भें ही क दि भर । री बा कि बे हा पक हा परे हि छ न कि गे ही दर पक | दा ही +्ज भा दर पे दर ध दर | द व भ क मक '. तु कर्मी दर कं कि दी का की 5 जि | + 1. हि मी हक ही 1! | हक




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now