प्रत्यागत | Pratyagat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रत्यागत १७.
जा बैठा । इस हरफत फो देखकर सभापत्तिजी ने आँख तरेरी ।
टीआऋराम भी देखकर ज़रा व्यथित हुए, परंतु कीत्तन में कोई
स्तास रुआचट नहीं पड़ी ।
जब और सच लोग गा रहे थे; तव मंगलदास से उस
लड़के के कान में कहा--/पंडितजी गजरों के भार से লু
सेजा रहे हें।!
' लड़के नें सोर के साथ पंडितेजीं की ओर देखा, ओर
पंडितजी तो देख हो रहे थे; लड़के ने दूसरी ओर दृष्टि
फैर जली। पंडितज्ञी समंभ गए कि मेरे विषय में ही कुछ
कष्टा है । मंगलदास ने देखा कि लड़के के मन में चुलबुली
पेदा नहीं हुईं. तब चूटकी लेकेर घोला-- ज़रा सुनो जी, सच
लोग गा रहे हैं, अकेले हमारे-तुम्दारे गले बंद रहने से उत्सव
फोका न पड़ेगा ।? क
लड़के ने डरते-डरते नीची निगाहों से पंडितनी की ओर
ताकेंकर कहा--“कहो न, जल्दी, क्या कहते हो | पंडितजी
हम लोगों की ओर धुर रहे हैं |?
लड़के ने एक अनूठी वात कहने का प्रयत्न किया था।
` तुरत मंगलदास ने कानमे बड़ी गंभीरता के साथ फहद्दा--
केसा से की तर्द रेंकता है !” अनूठी बात कद्दने के प्रयत्न
ने हस ठठोली के लिये उस लड़के के मन में बेक़ाबू जगह:
कर दी थी। भेंसा और रेंकना |! खिलखिलाकर हँस पढ़ा ।
मंगलदास को-भी अपने/ही शब्द-चातुय पर हँसी आ गई।
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