विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान | Vilesh Namak Manovigyan
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अन्धकारपूर्णं अजान से निस्संदेह महपि युगम ने मानेव-चेत्तना को मुक्तं कर
सत्य, शिव, सुन्दर के आलोक समुद्र की तरंग ही इंगित किया है | युग के अव-
चेतन की वैज्ञानिक धारणा ने निस्संदेह विश्व के साहित्य सृजन, तत्ववोध समाज-
शास्त्रीय ही नहीं प्रत्येक अपराविधा के धीमान क्षेत्रों में प्रकाश की किरणें ही
विछाई हैं। फ्रॉयड की मान्यता मनुष्य को पश् ही स्वीकार करती है, जब यु ग की
धारणा मनुष्य को सनातन मानव चेतन स्वीकार कर उसको देवत्य के विकास के
लिये आशावान करती तथा स्वयं के शिव, सुन्दर अधाध चैतन्य का अमोध विश्वास
भी प्रदान करती है । निस्सदेह महि युग ने मानव चेतना के अवचेतन
सम्भाग की अपनी दिव्य धारणा द्वारा मनुष्यं ओर मानव जाति को उसके असह्य
दुभग्ि से वचा लिया है खैर मानव-जीवन के न्दो से आत्मविश्वास पूवक उभरने
का हौंसला ही अपित किया है। इस प्रथ्वी पर मानव निस्संदेह असत् से सत्य,
अन्धकार से प्रकाश ओर मृत्यु से अमरत्व की ओर विकसित होने के लिये ही जन
धारण करता है । यु गीय विष्लेषणात्मक मनोविन्नान की सिद्ध पद्धति द्वारा मनुष्य
को अपने जीवन का सत्य, शिव, सुन्दर विश्वास ही प्राप्त होता है ।
श्री सिगमण्ड फ्रॉयड के मनोविश्लेषण के सिद्धान्तों ने अनायास ही कला,
साहित्य एवं मानव की समूची सृजन-प्रवृत्ति पर भारी असर किया है-पुराण काल
ते चली आती तथा मानव जीवन के उत्तम उपयोग में आने वाली सभी उदात्
मान्यताओं, दिव्य धारणाओं तथा मनुष्य के व्यष्ठि तथा समष्ठि के समग्र जीवन
क्रम को समझने की सारी प्रक्रिया ही सिग्रमण्ड फ्रॉयड के नाम-प्रणीत और दमित
इन्द्रिय सन्निकर्प के बोध के कारण कुत्सित होती गई है । कला और साहित्य सृजन
वी अस्मिता देह-सुख की कातरता और समष्ठि की सुष्ठ मर्यादाओं के प्रति विद्रोह
में ही वदल गई । मनुष्य अपने मूलभूत दिव्यत्व और देवत्व के प्रति अपना आत्म-
विश्वास ही जैसे खोता चला गया तथा वह एक कामुक तृष्णाओं का पशु ही वनता
गया फ़र् डियन मनोविज्ञान ने क्रमशः मनुष्यों को देहस्त कर एक विलक्षण चार्वाक
ही बनाना आरंभ किया था। मानव की उदात भौर श्रेष्ठ सृजनात्मक चेतना ही
पाशविक होती गई और मनुष्य सनातन से प्राप्त अपनी दिव्य विरासत को ही
दुकरा गया । यह मानव जाति का सौभाग्य हो माना जायगा कि कॉर्ल गुस्ताव युग
ने अपनी चितीय अवचेतन धारणा द्वारा पुन: मनुष्य को मानवता के पथ पर
आरूढ़ ही किया है। मानव-व्यप्ठि अपनी सनातन समष्ठि के सहित और द्वारा
सत्य, ज्ञान और आनन्द का ही अमोध चैतन्य है--इस ओर महपि युग ने सम्पूर्ण
मानव का दिव्य प्रत्यक्ष किया तथा मानव जाति के प्रकाशमय दिव्य अनुभवों को
उवार लिया है | विद्वान लेखक कहते हैं : “कार्ल गुस्ताव युग की मान्वता अनुसार
विष्लेयणात्मक मनोविज्ञान एवं साहित्य कला तथा साहित्य का सम्बन्ध
विवादास्पद होने के वावजूद भी अत्यन्त गहन एवं घनिष्ठ है। बतः मनोविज्ञान
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