पालि - महाव्याकरण | Pali-mahavyakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- ग्यारह - सूत्र, ६. उपतिष्य-प्रशन, और ७. राहुलोवाद' सूत्र मेँ भगवान्‌ ने जो मृषावाद करे विषय में उपदेश दिया है भन्ते! मे चाहता हं कि सभी भिक्षु, भिक्षुणिर्या, उपासक तथा उपासिकायें इन्हे -सदा सुने ग्रौर पालन करे । भन्ते ! इसी लिए में यह लेख लिखवा रहा हँ--ऐसा समझें । परलियाय -पालि इससे साफ प्रकट होता है कि बुद्ध-वचन के श्रर्थ में ही 'परियाय --पलियाय' शब्द का प्रयोग किया गया हूं । पालि भाषा मं बहूधा पः ग 'पटि' उपसग का दीघंहोः कर धारि'या पारि हो जाता हं । जेसे-- परि लेय्थक--पारिलेय्यकं पटि-[-कड्ग्वा--पाटिकर्ला पटि [- भोगो--पाटि भोगो इत्यादि इसी तरह, पलियाय शब्द का रूप धीरे-धीरे फालियाय' हौ गया । नाद मे, इसी शब्द का लघु-रूप पालि! हो गया; भौर इसका प्रथं हुग्रा बुद्धवचन'। 'दोघनिकाय-पालि', 'उदानपालि , धाचित्तिय-पालि' प्रादि कहने से यह मतलब है कि ये ग्रन्थ बुद्धवचन' हैं । भालि का भ्रं बुद्धवचन' होने से, यह शब्द केवल मूल त्रिपिटक ्रन्थों के लिए ही प्रयुक्त हुआ हैं, श्रटुकथा के लिए नहीं । मागधी भाषा के प्राधार पर बुद्ध को प्रपनीहोलो को छाप लग कर पालि भाषा का विकास हुआ। पीछे, जनता में त्रिपिटक के साथ-साथ पालि भाषा का खूब प्रचार हुआ। ए. बेरियेडल कीय महोदय लिखते हेँ:--- [106 5950) 0£ 0706 पतत, फल 15 255012350. 10 ७० 12010900050 10 1170 0%1000, 25 01001001655 01১5 ০৭৮1০9004 110002 081002. 11010500961 0০%1560 01 प १६८०5 [196 11706100156 0 1921000 1001 10) 17014. 06719119211 6৬5 9 19239. भ्र्थात--बुद्ध-भाषा, जो त्रिपिटक में भ्राती हे, निस्सन्देह शिक्षित समाज




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