विवेक की बातें | Vivek Ki Baten
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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No Information available about मुनिश्री कन्हैयालालजी कमल - Munishri Kanhaiyalalji kamal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)/ अस्तद्रष्टा बन
दोषः दूसरो के क्यो देखे, सता ‹ उससे अथं - नही, '
क्यों करता है पर की चिन्ता, वोझा' है यह व्यर्थ सही ।
कर अपनी नित आत्मस्साधनी, क्यो रहता 'है खिन्तमना,
अन्तदर्टा बनकर अपनी, ` आत्मा शोध्य विशुद्ध वना ॥।
न
/ इससे बटकर नहीं
ते हु १
<न के मल को साफ करे जो, इससे व्रढकर् स्नान नही,
सव जीवो को अरय, बनाये, ,इससे _ वढकर दान नही । -
अपने को जो झट पहचान, . इससे बढकर ज्ञान- नही, ,
निविकार मन जो रख पाये, इससे बढ़कर ध्यान नही ।।
8 घणां क्यौ
. /दुराचार से दूषित नर से, घृणा न करते पुरुप महान्;
सद्वचनो के सावन से घो, उसे वनाते स्फटिक समान ।
सलिन वस्त्र को घृणित समन्लकर, क्या को$ तज देता हैः
निर्मल जल से धोकर उसको, अधिक स्वच्छ करः लेता है 1
ष
से क्या हूं ?
विप-सम सयम, व्रत यम के सम, अत्म-ध्यान जसे कारा,
णिसा सन्तो की पावक सम, तप लगता असि कौ धारा
कर्मदोष से सन्तो का भी, सग कभी न मुझे भाता,
दूर भव्य या मैं अभव्य हूं, हैं भगवन् व ही ज्ञाता॥
विवेक की वातं १६
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