आधुनिक हिंदी - काव्य में नारी भावना | Adhunik Hindi Kavya Me Naari Bhawna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका ] ७
( ३ )कष्णोपासक भक्तों की, जिसके प्रमुख कवि सूर हैं और ( ४ ) प्रेममार्गियों की, जिसके प्रमुख
कबत्रि जायसी हैं | साम्प्रदायिक-हष्टि से इन चारो में चाहे जो भी भेद रहा हो; किन्तु नारी
के सम्बन्ध में इन सबका दृष्टिकोण एक हो हे |
(भक्ति-युग की सभी धाराश्रों में नारी के दो रूप दिखाई पड़ते हैं; सामान्य तथा
विशेष | प्रथम रूप लौकिक तथा यथार्थ है और द्वितीय काल्पनिक, पारलोकिक तथा आदर्श |
प्रथम रूप में-नारी निन्दनीय है, दुर्ग णों को खान है, माया का प्रतीक है, श्रीर् द्वितीय सूप
में वह गआह्य तथा आदरणीय दे । )
नागौ क सामान्य या वथाथं रूप के सम्बन्ध में ससी मक्त-क्वि एक स्वर से घ॒ुणा-
त्म -पावना को अभिव्यंजना करते हैं। यह भावना क्रोध और हिंसा से भरी हुई है। मक्त
कवियों ने नारी को आध्यात्मिक मार्ग की बाधा के रूप में देखा है ।* इसीलिए रसे भ्रष्ट
करनेवाली माया का ही साक्षात् रूप माना है |* उसमें तोत्र आकर्पण है, किन्तु सन्त को
उससे दूर रहने के लिए इन कवियों ने वार-बार चेतावनी दी है 1१ कल्लतः भक्त-कवियों ने
नारी को 'सर्पिणी?, 'वाधिनीः, 'पैनो छुरी?, ¶विव को बेलि श्रादि विशञेगख दिए ह । भक्त-
कवियों का विश्वास है कि स्त्री में काम-प्रवत्ति अत्यन्त प्रवल होती है,* इसलिए वद्धा तथा
जननी पर भी विश्यात करना वे उचित नहीं समझते ' और छोटी-मोयी कामिनी सब ही
को विप की वेलि कहते हैं | प्रेम के ज्षेत्र में सी नारी को अस्थिर तथा छलपूण माना गया
है ।७ भक्त-कवि नारी को अत्यन्त नीच तथा कपटी मानते हैँ, जो अपनी नीच इच्छाश्रों की
पूर्ति के लिए. सब कुछ कर सकती है [5 यहाँ उसकी शक्तियाँ अदम्य ई, पुरुप उको सम
पने में असमर्थ रहता है ।* नारी को इतना दुर्गणों से युक्त और भ्रविश्वलनीय मानते हुए,
कवि टोल-गंवार और पशु तक से उसकी तुलना कर देता है और ताड़ना का सहज अधि-
कारो वता देता है [५९
$सृरदास---सूरसुधाः ““काप्त क्रोष- “और” पद १७, ए> ८ |
वही-- प्वौरेसन'' ***बौराना” पद १-२, छ० ३१]
कबीर-...चलौ-चलौ “****“दोय,”” ख० बा८ खं> सागे १, दोहा १, प्रू० ७८ |
चही-- पनारी-नसावे' * 'कोय”?, दोहा ८ ভুত ७८ |
श्तुलसो--राम चरित मानस, तृतीय सोपान दोहा ७६-७७ एू८ ३२० |
ও এ मेहर ८५ छ० ३२११
डबही--“श्राता' * ***विलोकी!', दोड़ा २९, ए. २९५९
१ लह--लं> बा सं० साय १, दोहा १-२७ एछ+ २२३
इंकवीर-..सं० बः० सं० भाग १, दोहा १४ परऽ ५९]
७ष्षुर-पस---सुरमामर्, नकम स्कध, पद् ४४६३ ।
प्तुनसी--रामचरित सानस, द्वितीय सोपान, दोहा ४८, पर . १७६ |
°वही--^यथपि' * *अवगाहू? दोहा २८, ए० १६८ |
९ ०बही--रोंच रे सोपान, ¶०.२३३६]
কচ | পি
User Reviews
No Reviews | Add Yours...