भारत में व्यसन और व्यभिचार | Bharat Me Vevsan Aur Vyabhichar

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Bharat Me Vevsan Aur Vyabhichar by श्री बैजनाथ महोदय - Shri Baijnath Mahoday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१] शराव श्रथवा मय श राच आजकल की वस्तु नही है, युगो से ्रत्येक देश के लोग किसी न किसी प्रकार कामद पान करते ही आये है ! उसकी सादकता आरम्भ से गुण समी जाती थी । पर ज्यो-ज्यो सानव-जाति का विकास होने लगा, उसके बुरे-विषैले परिणाम से सचुप्य-जाति परिचित हो गईं । प्रत्यक धर्म के आदि-अन्थो से हमे इसके विषय से निषेधात्मक वाक्य मिलते है । वेद, कुरान, मलुस्टति,धम्मपद आदि सब इसका तीव्र खर से निषेध करते आये हैं। फिर भी मानव-जाति इससे अभी तक अपना पिड नही ভ্ভভা দাই । समाजशाख के विरोपज्ञ कहते है कि कई जातियो शराव के व्यसन की शिकार होकर इस प्रथ्वी-तल से सदा के लिए मिट गडं 1 न जने कितने साम्राज्य इस विष के शिकार हुए हैं ? शरात्र पीते ही कतव्या- कतंव्य का ज्ञान चला जाता है। भारतीय इतिहास में यादव- साम्राज्य के विनाश का इतिहास, जो खून के अक्षरों में अंकित है, इसी का कुपरिणाम है । रावण जैसे महान शक्ति- शाली और बुद्धिमान राजा की बुद्धि को नष्ट करने तथा उसे पतन की ओर ले जाने का दोष शूपनखा को नहीं, यदि शराव ही को दिया जाय तो शायद अनुचित न होगा। कम से कस हमें तो उस प्रवल राक्षस-जाति के पराजय का मूल कारण यही प्रतीत होता है । हम राम-रावण युद्ध का हाल




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