भारत में व्यसन और व्यभिचार | Bharat Me Vevsan Aur Vyabhichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१]
शराव श्रथवा मय
श राच आजकल की वस्तु नही है, युगो से ्रत्येक देश
के लोग किसी न किसी प्रकार कामद पान करते
ही आये है ! उसकी सादकता आरम्भ से गुण समी जाती
थी । पर ज्यो-ज्यो सानव-जाति का विकास होने लगा, उसके
बुरे-विषैले परिणाम से सचुप्य-जाति परिचित हो गईं । प्रत्यक
धर्म के आदि-अन्थो से हमे इसके विषय से निषेधात्मक वाक्य
मिलते है । वेद, कुरान, मलुस्टति,धम्मपद आदि सब इसका
तीव्र खर से निषेध करते आये हैं। फिर भी मानव-जाति
इससे अभी तक अपना पिड नही ভ্ভভা দাই । समाजशाख के
विरोपज्ञ कहते है कि कई जातियो शराव के व्यसन की शिकार
होकर इस प्रथ्वी-तल से सदा के लिए मिट गडं 1 न जने कितने
साम्राज्य इस विष के शिकार हुए हैं ? शरात्र पीते ही कतव्या-
कतंव्य का ज्ञान चला जाता है। भारतीय इतिहास में यादव-
साम्राज्य के विनाश का इतिहास, जो खून के अक्षरों में अंकित
है, इसी का कुपरिणाम है । रावण जैसे महान शक्ति-
शाली और बुद्धिमान राजा की बुद्धि को नष्ट करने तथा उसे
पतन की ओर ले जाने का दोष शूपनखा को नहीं, यदि शराव
ही को दिया जाय तो शायद अनुचित न होगा। कम से
कस हमें तो उस प्रवल राक्षस-जाति के पराजय का
मूल कारण यही प्रतीत होता है । हम राम-रावण युद्ध का हाल
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