श्री जवाहर किरणावली [भाग-२३] | Shri Jawahar Kirnawali [Bhag-3]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जवाहरलाल आचार्य - Jawaharlal Acharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)करना है कि जिससे अधिक कम करना व्रत लेने वाले श्रावक के लिए सम्मव
नही है। यह बात दूसरी है कि कोई श्रावक एक दम से अपनी आवश्यकताए
न पटा सके ओर इस कारण उसे व्रत की मर्यादा साधारण से अधिक रखनी
पडे, फिर भी उसका ध्येय तो यही होना चाहिये कि मै अपना जीवन बिल्कुल
ही सादा बनाऊं और अपनी आवश्यकताए बहुत ही कम कर दू। जो श्रावक
एक दम से आवश्यकताओं को नही घटा सका हे तथा अपना जीवन पूरी तरह
सादा नही बना सका है, वह यदि इस ओर धीरे-धीरे बढ़ता है तो कोई हर्ज
नही, लेकिन उसको यह लक्ष्य विस्मृत न करना चाहिये |
সান, বল यह कर्तव्य है, कि जिस तरह वह स्वय जीदित रहना
चाहता है, उसी तरह दूसरे को भी जीवित रहने दे। इस कर्त्तव्य का णलन
वही कर सकता है, जिसकी आवश्यकताए साघारण हैँ, তরী
जिसको आपश्यकताए बी हुई है वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
दूसरे को कष्ण मे डाल, अथवा उसकी आवश्यकताओं के कारण दृरार ক)
৯
User Reviews
No Reviews | Add Yours...