सुदर्शन चरित्र | Sudarshan Charitra

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Sudarshan Charitra by जवाहरलाल आचार्य - Jawaharlal Acharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श₹ . - ..कथारम्भमुक्त हो जाती । लेकिन जब सन्वान हुई ही नददीं, तब . तुम क्या' कर सकती हो ? ऐशी दशा में इस विफ्यक तुग्दारी चिंन्ता व्यर्थ है'। तुम चाहे जितनी चिन्ता करो, ठुम्दारी चिंता सन्तानोत्पचि के छिए,. उपयोगी नहदीं हो सकती । घल्कि इस विपय में तुम्दारा चिन्तित होना; भपनी घार्सिकता को दूपित करना है। अपन; जिन भक्त श्रावक हैं । रूपने को इस प्रकार की चिन्ता द्ोनी दी न चाहिये । इसलिए वुम, चिन्ता त्यागो। रददी उत्तराधिकारी की वात सोउत्तराधिकारी दो या न हो ;.. अपने आत्मा फे करयाण अकरयाण पर इस बात का कोई अभाव नहीं दो सकता । उत्तराधिकारी के दोने मात्र से अपने आत्मा का कल्याणनहीं हो सकता और उत्तराधिकारी के न दोने से अपने आत्मा का अकल्याण नहदीं दो सकता । इसलिए चिन्ता छोड़ो, और दान-घ्म के कार्य विशेष रूप से करती हुई अपना धन सदूकाय में ठगाओ ।यदि भपनी पुत्र विपयक अन्तराय टूटनी दोगी तब तो टूट ही जावेगी, नददीं तो अपने आत्मा का कल्याण तो होगा; तथा अपना द्रव्य सदुकार्य में छगेगा, क्रिसी अयोग्य के द्ाथ में न. जावेगा ।योग्य उत्तराधिकारी को द्रव्य सोंपने की भपेक्षा, द्रव्य को सददू- कार्य में छगाना दी श्रेष्ठ है । वेसे तो ठुम धर्म-काय करती हीरहती दो, लेकिन अब से विशेष करो, और अपना द्रल्य भी दानादि शुभ कार्यों में विशेष रूप से ठगाओ । इस म्रकार की चिन्ता; सवा त्याग दो |




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