हमारे सन्त | Hamare Sant
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सन्त नामदेव १५
यनि धनि मेधा-रोमावली, धनि धनि कृष्ण ्रोढे জাললী |
धनि धनि तू माता देवकी, जिन गृह रमैया कंवलापति ॥
धनि धनि वनखेंड वृन्दावना, जह् खेल श्री नारायना ।
वेनु वजारवै, गोधन चार, नामे का स्वामि आ्आानन्द करे ॥
और आगे यह उनकी निर्गुणा वाणी सुनिये :--
माइ न 'होती, वापन होते, कम्मं न होता काया ।
हम नहिं होते, तुम नहिं होते, कौन कहाँ ते प्राया ॥
चन्द न होता, सूर न होता, पानी पवन मिलाया ।
शास्त्र न होता, वेद न होता, करम कहाँ ते आया ॥
ক
पांडे तुम्हरी गायत्री लोवे का खेत खाती थी ।
लैकरि ठेगा टेंगरी तोरी लंगत आती थी ॥
पांडे तुम्हरा महादेव धौल वलद चढ़ा भ्रावत देखा था ।
पांडे तुम्हरा रामचन्द सो भी भ्रावत देखा था॥
रावन सती सरवर होई, घर की जोय गँवाई थी।
हिन्दू श्रन्धी तुरुकौ काना, दुवौ ते ज्ञानी सयाना ॥
हिन्दू पूर्ज देहरा, मुसलमान मसीद ।
नामा सोई सेविया, जह देहरा न मसीद ॥।
नामदेव कौ वाणी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि
निर्गुणा पन्थ के लिये मार्ग निकालने वाले नाथ-पन्थ के योगी और
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