हमारे सन्त | Hamare Sant

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Hamare Sant by रघुवीर शरण - Raghuveer Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्त नामदेव १५ यनि धनि मेधा-रोमावली, धनि धनि कृष्ण ्रोढे জাললী | धनि धनि तू माता देवकी, जिन गृह रमैया कंवलापति ॥ धनि धनि वनखेंड वृन्दावना, जह्‌ खेल श्री नारायना । वेनु वजारवै, गोधन चार, नामे का स्वामि आ्आानन्द करे ॥ और आगे यह उनकी निर्गुणा वाणी सुनिये :-- माइ न 'होती, वापन होते, कम्मं न होता काया । हम नहिं होते, तुम नहिं होते, कौन कहाँ ते प्राया ॥ चन्द न होता, सूर न होता, पानी पवन मिलाया । शास्त्र न होता, वेद न होता, करम कहाँ ते आया ॥ ক पांडे तुम्हरी गायत्री लोवे का खेत खाती थी । लैकरि ठेगा टेंगरी तोरी लंगत आती थी ॥ पांडे तुम्हरा महादेव धौल वलद चढ़ा भ्रावत देखा था । पांडे तुम्हरा रामचन्द सो भी भ्रावत देखा था॥ रावन सती सरवर होई, घर की जोय गँवाई थी। हिन्दू श्रन्धी तुरुकौ काना, दुवौ ते ज्ञानी सयाना ॥ हिन्दू पूर्ज देहरा, मुसलमान मसीद । नामा सोई सेविया, जह देहरा न मसीद ॥। नामदेव कौ वाणी के आधार पर यह कहा जा सकता है कि निर्गुणा पन्थ के लिये मार्ग निकालने वाले नाथ-पन्थ के योगी और




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