अपभ्रंश प्रकाश | Apbhransh Prakash

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Apbhransh Prakash  by देवेन्द्र कुमार - Devendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ ] देसिल লক্সনা জন জন নিষ্ঠা, ते तैसन जंपजो अवहद्य । इसमे “तैसन! शब्द विशेष ध्यान देने योग्य है । 'देसिल बञ्नना! ग्रौर “अवहह्दा' को एक ही मानने के लिए “तैसन! का अर्थ “बहीः किया जाता है, पर 'तैसन? का प्रचलित और स्पष्ट अर्थ वैसा ही? हे । साहित्याख्ड अपभ्रश देशी भाषा से दूर हो गया था, विद्यापति ने उसे देशी भाषा के मीठेपन से युक्त किया । खरा अपभ्रश तो पश्चिमी या नागर था, पर इन्होंने उसमें देशी वचन की मिठाई, जनता की ब्रोली या ठेठ रूप मिलाकर उसे दुसरा रूप देकर सामने रण्वा । यदं इस लिए भी विचारणीय है कि उनके समय में अपश्रश या अवहद्द बोल- चाल मे नहीं था । बोल-चाल की भाषा में तो उन्होने प्रथक्‌ ही रचना की है | उनके गीतों और कीर्तिलता की भाषा मे स्पष्ट अंतर है--भारी अतर है। एक पारंपरिक साहित्यिक भाषा है जिसमे साहित्य लिखने का बहुत दिनों से प्रचलन था। दूसरी जनभाषा है, जिसमे जनता के घरेलू गीत तो रहे होंगे पर साहित्य नहीं था। विद्यापति ने देशी भाषा में साहित्य का प्रवेश कर दिया । जनता के घरेलू सुख-दुख की बातों के स्थान पर देशी भाषा मे साहित्य के देवता राधाकृष्ण को स्थापित कर दिया और उत्तरवर्ती हिंदी-साहित्य के लिए बहुत बढ़ा मार्ग लोल गए, | प्रस्तुत पुस्तक में अपश्र श-अवहद-संबंधी ऐतिहासिक विवरण और उसका व्याकरण, कोश आदि सभी संक्षेप में संग्होत है । जैन होने




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