शब्दों का अध्ययन | Shabdon Ka Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शब्द : परिभाषा और वर्गीकरण १५
से भी वड़ी है। सर्वाधिक तत्सम शब्द सभी आ्राधुनिक आये भाषाओं में इसी
रूप में आये है ।
(ग) सस्क्ृत के व्याकररिक नियमो के आधार पर हिन्दीकाल में निर्मित
तत्सम शब्द । इस प्रकार के अधिकाश शब्द ्राधुनिक काल मे शब्दो की कमी
की पूर्ति के लिए बनाये गये है, श्रौर बनाये जा रहे है। जैसे जलवायु
(आवहवा), वायुयान (हवाई जहाज या एरोप्लेन), सम्पादकीय (৩5৫16০0181),
प्राध्यापक (1०४णाथ), रेखाचित्र (#(०४००), प्रभाग (४०००॥), वाक्य
विश्लेपण (5০0657০০ 2081958), লিহান্দ (676००), नगरपालिका
(ग्राएगार्थए॥9), समाचारपत्र, पत्राचार, (००॥०४००7१०॥०८), लघुणका,
कटिवद्ध (फा० कमरवस्ता) श्रादि । ऐसे शब्द इधर पारिभाषिक शब्दो के लिए
लाखो की संख्या भे बने है ।
(घ) अ्रन्य भाषाओ्रों से आये तत्सम शब्द । इस् वर्ग के शब्दों की सख्या
अत्यल्प है। कुछ थोड़े शब्द बगाली तथा मराठी के माध्यम से आये है।
इनमें कुछ शब्द तो ऐसे है जो सस्क्ृत मे भी प्रयुक्त होते थे, शौर कुचं एसे
है जो इन भाषाश्रो में सस्कृत के श्राधार पर बने । कुछ उदाहरण है : बगाली
वक्तृता, उपन्यास, गल्प, कविराज, सदेश, श्रमिभावक, निर्भर, तत्वावधान,
प्रम्यर्थना, भ्रापत्ति, सश्रान्त, स्वप्निल, उ्मिल, वन्यवाद, मराठी ` वाड.मय,
प्रगति ।
हिन्दी मे प्रयुक्त होने वाले तत्सम शब्द सज्ञा, सर्ववाम, विशेषशण, क्रिया
तथा शअ्व्यय है। सज्ञा शब्द प्राय दो प्रकार के है :
(क) सस्क्ृत के प्रात्तिपदिक--जैसे राम, कृष्ण, फल, मित्र, कुसुम, पुस्तक
पत्र, पुष्प, देव, वालक, वृक्ष, मनुप्य श्रादि प्रकारान्त; कवि,हु रि, मुनि, कपि,
कपि, यति, विवि, रवि, श्रणग्नि, पति, रुचि, मति भ्रादि इकारान्त ; सुधी,
लक्ष्मी ्रादि ईकारान्त , भानु, गतर, विष्णु, गुर, धेनुः जन्तु, प्रभु, शिशु, पमु,
साधु आदि उकारान्त, तथा ववृ, चमू, भरु, स्वयभ्रु रादि ऊकारान्तः श्रादि।
(ख) संस्कृत के प्रथमा एकवचन--जंसे सखा, पिता, भ्राता, जामाता,
दाता, नेता, कर्ता, माता, दुहिता, विक्, सम्राट्, आत्मा, ब्रह्मा, राजा,
महिमा, युवा, हस्ती, करी, पक्षी, स्वामी, तपस्वी, सीमा, नाम, चमं विद्वान,
भगवान्, घनवान् श्रादि।
कुछ शब्द ऐसे भी है, जितका प्रातिपदिक रूप एव प्रथमा वहुवचनं रूप
एक ही होता है, श्रत. इन्हे उपयुक्त दो मे किसी में भी रखा जा सकता है ।
जैसे वारि, दधि, भ्रस्थि, वस्तु, मधु, विद्या, रमा, वाला, निशा, कन्या, भार्या
नदी, स्त्री, जगत्, सुहृद् श्रादि।
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