धारा बहती रही | Dhara Bahati Rahi

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Dhara Bahati Rahi  by भीष्म साहनी - Bhisham Sahni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तह मेरी भी जबदस्त इच्छा है दिः आप जिंदा रहू, ययोकि जीवन से बढ़ कर इस दुनिया मे और कोई चीज नहीं है} 'वेवासि है 1 सरामर बकवास | '--युवक ते कहा । “कहा न, विशेष पृरिस्थितियों के वागरण इस समय आम को एसा लग रहा है ।” युत्रतो को आवाज अतिरिक्त नम हो आयी थी । धारा बह रही थी। चादनी के कारण वह बिल्शुल चादी सी लग रही थी 1 उनकी तरणो म गूनगुनाहट सी यजे रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे चह गा रही हा । युवक ते पहचानी नजरों से गौर से उसकी और दंखा। उस्ते वद शालू मी ही मोहक ओर प्यारी लग रही थी ।




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