चंदगुप्त : एक अध्ययन | Chandragupta : Ek Adhyayan

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Chandragupta : Ek Adhyayan by Premnarayan tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू चंद्रगुप्त जब सारी वस्तुस्थिति तुरत बुद्धि से समझ लेता है श्रौर सिल्यूकस से आपने प्राणों की रक्षा की कहकर शपनी कतशता प्रकट करता है उसके पश्चात भी यवन सेनापति का सारी बात इस प्रकार स्पष्ट करना- जब तुम झ्रचेत पड़े थे तब यह तुम्हारे पास बैठा था मैने विपद समझ कर इसे मार डाला व्यर्थ दी तो है । ग्यारदवाँ दश्य--अअदृष्टदर्शी भारतीय दाशनिक की सिर्मीकता तत्वदर्शियी बुद्दि श्र भविष्यवाशियों से झंपने को जगद्विजेता समभने वाले सिकन्दर को प्रमावित कराना इस दृश्य का प्रथम उद्देश्य है तथा चद्रगुप्त के असीम तेज की आर उसे श्राकृ्ट कराना दूसरा । १ प्रत्येक परमाणु न जाने किस क्षण से खिंचे चले जा रहे हैँ जैसे काल अनेक रूप में चल रहा है । २ सुकसे कु मत कहो | कहो तो अपने श्राप ही कहो जिसे आवश्यकता होगी सुन लेगा । ३ भूमा का सुख श्रौर उसकी महत्ता का जिसको आआभाष मात्र हो जाता है उसको ये नश्वर चमकीले प्रदर्शन नहीं अभिमूत कर सकते वद्द किसी बलवान की इच्छा का क्रीडा-कंडुक नहीं बन सकता । ४ जिस वस्तु को मनुष्य दे नहीं सकता उसे ले लेने की स्पर्दा से चढ़कर दूसरा दंभ नहीं । ४५ सगलमय विश नेक श्रमंगलों में कौन-कौन कल्याण छिपाए रहता है हम सब उसे नहीं समझ सकते । ६ कट्याणकृत को पूण विश्वामी होना पड़ेगा । विश्वास सुफल देगा दुगर्ति नहीं । ७ विजय-तृष्णा का श्रंत परामव में होता है । झादिनञ्ादि भारतीय दाशनिक दाब्यायन के तत्वपूण कथन पूण सत्य श्र प्रभावशाली हैं । गाघारलदमी अलका के लिए अच्छा लाश देवि तुम्हारी श्रावश्यकता है ब्राह्मणुत्व के गौरव पर गर्व करने चाले चाणक्य के लिए सब विद्यात्नों के श्राचाय दोने पर भी तुम्हें उसका फल नहीं मिला उद्देग नद्दी मिटा श्र चंद्रयु्त को दिखाकर रखकदर के लिए देखो यह-भारत का भावी सम्राट तुम्हारे सामने




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