जीवन सरिता | Jeevan Sarita

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Jeevan Sarita by सुमित्रा चरत राम - Sumitra Charat Ram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन सरिता 17 का एक और भी कारण रहा हाया--यही कि शहर में रहते हुए मन की सपूण उमुक्तता क साथ हम विचर नहीं सकते थ। एक प्रकार से बपन- मुक्त तो हम वहाँ भी थे, पर फिर भी सीमाएणें थी। इसलिए हमारी सारी शरारता का केद्ध सिफ धर हो या। घर को चार-टीवा सी हमारी ए मुक्तता का जम दम घाटती थी। घर से स्कूल विवल जात और छुट्टी हु ता घर लौट नात | जब स्कूल छूठा औौर कॉतिज जान समर, तव ता नात्म मयम का पहरा और भी क्ठार हो गया । यह सव हम किसी ने विशेष रूप से सिखाया नही था। अनजाते ही किसी जत प्रेरणा से हम स्वत विजश हो जात | स्त्री शिक्षा का प्रचार तय अवश्य था और बहुत जो रा पर भी था । नारी-मुकित वो भी खूब चर्चा हुआ करती । फिर भी नारी के महंत शील- सकोच के जतिरिक्त उसकी अपनी परिवशगत विवशताएँ तो थी ही उनका जतिकमण हमार वश की वात नहीं थी । पिला न हमारे मत-मस्तिज' का खोलन का प्रयत्व क्या, कितु सार समाज का वह दीखा आपुनिव रुप स कहा प्राप्त हुई थी ? फिर भवा हमी लाक' रुचि वी उपला कहा तय कर पाती? एसा भी नहीं कि हम हटात में बकार दौटती फिरती रही हा। फिर भी वहा की आबा-हवा मे वह घुटन नहीं थी, प्रद्दति वा सीधा सपक वहा हर क्षण दिखाई दता था। वह वाटात्म्य शूटर म कसे समव हाता ? माटी की कच्ची गध वाक-गीता का सहृत या लास, हरीविमा व स्वच्छद विस्तार का मोन निमवण हम रह-रहू कर आएपित करता। तिक्ष पर रावाइुर वाला के सरण म मनाय जान वानि उत्सया वा रग इग भी निराला हाता। सरस्वती-पूजन हा जश्मी-पूजन हा या फिर रामलीला जथवा जमा प्टमी उनकी पुरानी शान-बान म कही काई कसर न ना पायी । परपरणा गौर भव्यता वा बनाखा सम्मिश्रण लग हाथा जपन ओर कचन के विपम में एक नौर वात की च करा दना भी आवश्यक है। यह मरा तिजी विश्लेषण है मतभेद से सवनी ड नि के प्रति हम दानो षा नसीम्‌ बना हवा सकती है। यह सच है वि ग्रे ते सूक्ष्म विभागष' लगाव है पर दोना के इस लाकपण के मूल म छत ৪68: साधी रखा है। प्रकृति मर लिए एक्माल मनोस्जन एव मन चहु




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