आधुनिक गीति - काव्य | Adhunik Giti Kavya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Adhunik Giti Kavya by सच्चिदानंद तिवारी - Sachchidanand Tiwari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सच्चिदानंद तिवारी - Sachchidanand Tiwari

Add Infomation AboutSachchidanand Tiwari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
তু आधुनिक गीति-काब्य पाश्चात्य गीतों मे कवि का व्यक्तित्व प्रधान रहता है | उसने संसार में जो कुछ देखा-सुना है उस पर अपने व्यक्तित्व का रंग चढ़ाकर . पाठकों के समज्ञ रखता है। ऐसी दशा में यह भी सम्भव है. कि उसका अपना अनुभव लोक के अनुभव से भिन्न हो। गीत और लिरिक की रूप रेखा अधिकांश एक-सी होती है, केबल व्यंजना प्रणाली भिन्न होती है।......... | हमारे यहाँ व्यक्तित्व की प्रधानता पर इतना जोर नहीं दिया जाता क्योंकि भारतीय कबि की अनुभूति सदैव लोकानुभूति से मिलती रही है । किसी भी साहित्य में गीतों के दो रूप देखने को मिलते हैं-- लौकिक गीत और “साहित्यिक गीत | निश्चय ही साहित्यिक गीतों से बहुत प्राचीन लौकिक गीतों का इतिहास है। कितनी ही जातियों के लिए ये लौकिक गीत ही “श्रुति! हैं जिनमें उनकी प्राचीन सभ्यता रकित है | ः लोकिक गीत उतने ही प्राचीन हैँ जितनी प्राचीन है मनुष्य जाति ! जब्र से मनुष्य ने बोलना सीखा स्यात्‌ तभी से बह मधुर ध्वनि को गरम करने लगा जिसके फलस्वरूप कोमल गीत प्रस्फुटित हुए। वाणी कै साथ माधुय का सम्मिलन ही इन गीतों का उद्गम है। तब से लेकर छ्राज तक यह लोक-गीत-घारा श्रजच्ल स्प से प्रवाहित होती चली श्रा रही है जिससे जन साधारण को सर्वदा व्रति पिलती रदीहै। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रेश तथा श्रन्य भाषाश्रों में लोकगीत रहे हैं और हिन्दी में भी इनकी कमी नहीं है। जनसाधारण के गीत परिषतों के गीतों से भिन्न होते हैं--एक लौकिक गीतों का प्रेमी है तो दूसरा साहित्यिक गीतों का । हमारे देडझ़ा में झा और अनाय दोनों जातियों के पृष्ठ लोकंगीति-निधि हैं | जहाँ हम ब्रज और भोजपुर के मनोहर गीतों से परिचित हैं, वहाँ हमें यह भी जान लेना चाहिए कि कोलों, गोंडों




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now