सुख शांति रहस्य | Sukh Shanti Rahasya
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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विशेष इंश्वर कहाता है ।
प्र०--“इैश्वरासिद्वें। ॥/! सां० अ० १ सू० १२
क्या यह ठीक है ?
उ०--यहां इंश्वर की सिद्धि में प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हैं और
न इश्वर जगत् का उपादान कार्ण हैं और पुरुष से विलक्षण
अथ।त् सवतन्र पूण होने से परमात्मा का नाम पुरुष शरीर में
शयन करने से जीव का भी जाम प्ररुष है क्योंकि उसी प्रकरण में
नहा-प्रधान शक्ति योगा्चत्सङ्खापत्तिः ॥१॥ सत्तामात्राे
त्सर्वेश्वयेम् ॥२॥ श्वतिराप प्रधान काग्येखस्य ॥३। सस्य
০ ४ सूल ८-६-१२॥
यदि पुरुष को प्रधान शक्ति का योग हो तो पृरुष में सङ्गापत्ति
हो जाय श्रथांत जैसे प्रकृति सूच्म से मिलकर छायरूप में सुज्जञत
हुई है बेस परमेश्वर भी रथूल हो जाय । इसलिये परमेश्वर जगत्
का उपादान कारश नहीं किन्तु निमित्त कारण है ॥१॥ जो चेतन
से जग्त् फी अ्पत्ति हो तो जैसा परमेश्वर समश्रययुक्त है बैसा
संसार में भी सर्वेश्चयय का योग होना चाहिये, सो नहीं। इससे
वही बात ॥ २॥ क्योकि उपनिषद् भी प्रधान डी को जगत् का
उपादान का? ण॒ कहती है इसलिये जो कपिलाचाय जी को अनीश्वर-
वादी कहता है जानो वही श्रनीश्वरवाद् है कपिलाचायं जी नदीं ।
तथा (चति सर्वत्र व्याप्नोतीत्यात्मा/” ज्ञोसबंत्र व्यापक
ओर सर्वज्ञादि धमयुक्त सब जीवों का श्रात्मा है उसको मीमांसा
वशेषिक और न्याय ईश्वर मानते है ।
प्र०--इश्वर अवतार लेता है या नहीं ९
र०--नहीं, क्योंकि, भ जएकपात्” यजु० झर० ३४ मं० ४शे।
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