गुरु गोबिंद सिंह | Guru Gobind Singh

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Book Image : गुरु गोबिंद सिंह  - Guru Gobind Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 परिस्थितिगत पृष्ठभूमि यद्यपि किसी भी महापुरुष का जीवन किसी युग तक सीमित नहीं रहता, तथापि उसके कार्यो का उचित संदर्भ में मूल्यांकन करने के लिए युगीन परिस्थितियों का अध्ययन एवं विवेचन बहुत आवश्यक होता है। युगीन परिस्थितियों एवं मूल्यों को भुलाकर जब भी कभी किसी महापुरुष का महत्वांकन परिवर्तित समय के मूल्यों एवं आदशोँ के आधार पर किया जाता है तो भयंकर धूल होती हैं। गुरु गोबिंद सिंह का सम्पूर्ण व्यक्तित्व अपने युग की राजनीतिक परिस्थिति से प्रभावित है। उनके काव्य की अन्तःप्रेरणा भी इससे पर्याप्त रूप से प्रभावित हुई है। गुरु नानक ने भी अपनी वाणी में देश की राजनीतिक स्थिति का पर्याप्त वर्णन किया है। बाबर के आक्रमण से उत्पन्न स्थिति का वर्णन करते हुए वे अपने एक शिष्य लालो से कहते है “हे लालो, यह (बाबर) पाप कौ লায়ন लेकर काबुलं से दौड़ा आया है ओर सबसे बलपूर्वक घन ले रहा है। शर्म और धर्म दोनों ही छिपकर खड़े हो गये हैं। प्रधानता झूठ को प्राप्त हो गई है। काज़ियों और ब्राह्मणों को कोई पूछता नहीं। विवाह के मंत्र शैतान पढ़ता है।''” गुरु गोबिंद सिंह का जन्म जिस समय हुआ, उस समय मुगल शासन अपनी राजनीतिक शक्ति के चरमोत्कर्ष पर था। अपने पिता को बंदी बनाकर, अपने भाइयों 1. पाप की जंज ले काबुलहूँ धाइया जोरी मंगे दान वे लालो। सरमु धरमु दुह छप खलोए कूड फिरै परधानु वे लालो। काजीआं नामणां की गल थाकी अगद पड सैतानु बे लालो। --विलँग महला




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