पाबूजी की पड़ | Pabuji Ki Pad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
125
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. महेन्द्र भानावत - Dr. Mahendra Bhanavat
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इतनी कम उम्र में पावृजी ने जो अमाधाग्ण पौरूष और शौर्य बताया उसके
कारण इनके चरित्र को लेकर कई कीर्तिगाथाएँ, चाग्त काव्य और वीर गीत लिखें
गये। ये परवाड़ा नाम से गाये जाते है। इनका प्रचलन न केवल राजस्थान में अपितु
प्रध्यप्रदेश, गुजग़त, हरियाणा, पंजाब और सिंध तक हुआ।
पड़ में पाबूजी का कई नामों से स्नवोधित किया गया है जो उनकी विशेषता
और वीरणुणों के भी परिचायक हैं। गढ़पतिया, मीठा मारू, अन्दाता, हिंदवाणी राजा,
भवर बना, गठौड़ी राजा आदि नाम तो ऐसे हैं जो दूसरा के साथ भी प्रयुक्त किये
मिलते है पर लिछमण टेव, पाल भंवरजी, पाल बनाजी, भाल्याला, भुरज्याला,
कमधजिया, बॉकाटेव जैसे नाम पावृजी के लिए ही दिये गये हैं। इनमें भाला रखने
के कारण भाल्याला एवं उनके गढ़ में विशिष्ट मोरचा-भुरज होने के कारण भुरज्याला
कहा गया। इसके अतिरिक्त पाबूजी ने पाल नाम से एक अलग गाँव बसाया था।
अतः इन्हें पाल, पालजी, पाल बनाजी, पाल भंवरजी कहा गया है। इनका जन्म
साधारण मनुज की तरह नहीं होकर अपनी माता की छाठी फाड हुआ। इसलिए इन्हे
हाड़ फाड़ पाबू' भी कह्व जाता है। इनके पैदा होते ही इनकी माँ चल वसी। ये बोथा
के पुत्र थे
पड़ में पावृजी को लक्ष्मण का अवनार माना गया है। भोपों में प्रचलित क्था-
किवदंती के अनुसार लक्ष्मण सीता सहित राम जब ठण्डकारण्य में विचरण कर रहे
थे तो एक दिन वहाँ शुर्पणखा आई और उसने राम से विवाह करने का प्रस्ताव रखा।
रुम ने अपनी शादी हो चुकी कहकर अपने को टालते हुए अपने भाई लक्ष्मण का
नाम बता दिया। शुर्पणखा यह समझ बैठो कि राम-लक्ष्मण दोनों ने सीता के साथ
शादी कर रखी है। अत' वह सीता को मारने उसकी ओर लपकी। लक्ष्मण पास ही
बैठे थ। उन्होंने तत्काल उसका नाक काट दिया और कहा कि विवाह करने की तेरी
यह इच्छा कलियृग मे पूरी कझूँगा। आगे जाकर गोढ़ी शुर्पणखा का अवतार हुई और
पात्र लक्ष्मण के। मगर जिसका नाक नाट दिया उसके साथ शार्टी कैसे हो। अल
पाबूजी उसके माथ केवल अपना हाथ ही मिला पाये और तीसे फेरे के बाद ही उन्हे
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लीकदवता कल्लाओं का बाण दल उनके सन्नक सरजदासजां सा
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