नवनिधि | Navanidhi

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Navanidhi by पं. भगवद्दत्त - Pt. Bhagavadatta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दै नवनिधि [ जायसी पदुमावति राजा कड वारी । पदुम-गघ ससि विधि अउतारी ॥ ससि-मुख अंय मलय-गिरि रानी । कनक सुर्गध दुआदस वानी ॥ हहि पदुमिनि जो सिंघल मादौ । खुर्गेध सुरूप सो तेर्हि कड छाहों ॥ दीरा-मनि हँ तेहि क परेवा । कोटा पट करत तेहि सेवा ॥ अडउ पाणडं मातुस कड भाखा । नाहि“ त पंखि मूटि भर पोखा ॥ जड दहि जि राति दिन सवरि मरडं ओहि नाई । मुख राता तन हरिर दुर जगत पड जाड ॥ चौपाई हीरा-मनि जो कर्वेल बखाना। सुनि राजा होई भर्वेर भुराना ॥ अगे आड पंखि उजिआरे । के सो दीप पनिग के मारे ॥ रहा जो कनक खुबाखिक ठाऊँ। कस न होए हीरा-मनि ना ॥ को राजा कस दीप उतंगू। जेहि रे खुनत मन भणउ पतंगू ॥ खनि सरो समुद चख मए किलकिला । कर्वैँखहि च भर्चेर होइ मिला ॥ कह सुगंध धनि कस निरमरी । दहं अलि संग कि अव-ही * करी ॥ अड कडु तरह जो पदुमिनि कोनी । घर धर सव के होषि“ जस होनी ॥ सवद बखान तहा कर कहत सो भो सई आड । चट दीप वह देखा सनत उखा तस चाड ॥ चौपाई का राजा ইত बरनडें तासू। सिघल-दीप आहि कबिलास ॥ जो गा तहाँ भुरानिड सोई। गइ जुग वीति न बहुरा कोई ॥




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